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२४४. भाषण: पालेजमें[१]

अप्रैल २२, १९१८

हमारी दैनिक जीवनचर्या में दो कमजोरियाँ दिखाई देती हैं। एक, हमारे काम ऊपरी होते हैं और दूसरे, हम जो भी काम करते हैं समझकर नहीं करते। जैसे कोई अभिनेता नाटकमें अपने कंठस्थ किये गये अभिनयको दुहराता है वैसे ही हम भी कार्य करते हैं। फलतः उनका अपेक्षित परिणाम नहीं होता। जैसे हरिश्चन्द्र पात्रके अभिनेतामें सत्यकी सम्पूर्ण व्याप्ति नहीं होती; हमारे समाजका व्यवहार भी इसी प्रकार चल रहा है। यहाँ इन कन्याओंने वन्देमातरम् गीत गाकर यही सिद्ध किया है। हमें अपना कार्य अधूरे मनसे करनेकी आदत हो गई है; किन्तु हम जबतक अपना कार्य पूरे मनसे न करेंगे तबतक हमें सफलता न मिलेगी।

हमारे पूर्वजोंको इसका खयाल था, इसलिए वे मन्त्रोंके शुद्ध उच्चारणपर विशेष ध्यान देते थे। यदि उसमें कोई अशुद्धि हो जाती तो वे उसे पाप मानते थे। आपने वन्देमातरम् जैसा गौरवशाली गीत कन्याओंसे गवाया। हम इस गीतका गौरव, उसकी ध्वनि और लय नहीं जानते। इसी प्रकार इस लड़ाईमें हम अपना काम अधूरा ही करते हैं, ऐसा मुझे लगता है। किन्तु यदि हमारा काम अधूरा होगा और हमने उसे उचित प्रकारसे समझा न होगा तो इन कन्याओंके गीतकी तरह हमारी लड़ाई निष्फल रहेगी। मैं ऐसी कटु आलोचना इसलिए करता हूँ कि अपनी इस लड़ाईमें आप सभी लोग सावधान रहें।

दूसरी कहनेकी बात यह है कि हमें इस लड़ाईको भलीभाँति समझकर चलाना चाहिए। श्री प्रैटने एक बार मुझसे यह बात पूछी थी कि जो काम मैं कर रहा हूँ क्या उसे लोग भलीभाँति समझते हैं। यदि लोग मेरे कार्यको न समझेंगे तो उसका परिणाम बुरा हुए बिना न रहेगा। हमें इस पवित्र लड़ाईमें अपना काम कच्चा न रखना चाहिए। हम तो छोटे-छोटे कर्मचारियोंसे भी डरते हैं। ऐसा न होना चाहिए। मैं बार-बार कहता हूँ कि बड़े अधिकारियोंसे मिलना हो तब भी उसमें हमारे लिए चिन्ता करनेकी क्या बात है। केवल इतना ही ध्यानमें रखना चाहिए कि बातचीतमें, हमारी भाषामें मिठास हो। यदि मतभेद भी हो तो उसे भी अच्छे शब्दोंमें प्रकट किया जाये। यदि हम इन दोषोंको अपनी लड़ाईमें से निकाल सकेंगे तो हमारी हार अवश्य ही नहीं होगी। हमें सदा यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी इस लड़ाईमें बिना विचारे कोई भी कार्य न किया जाये। ‘साँचको आँच नहीं होती’, यह आपको पग-पगपर स्मरण रखना चाहिए।

श्री वल्लभभाईने मुझे यह खबर दी है कि तहसीलदारने इस गाँवमें चार दिन पड़ाव डाला था; किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। किसान पूरी तरह मजबूत रहे।

  1. यह भाषण बोरसद ताल्लुकेके पालेज गाँवमें गांधीजी और उनके साथियोंके जानेके अवसरपर दिया गया था। सभामें एक हजारसे अधिक किसानोंने भाग लिया था।