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भाषण : सुणावमें

हमारे यहाँ धार्मिक कृत्योंमें वादन और गायनको स्थान दिया गया है। हमारे देशी वाद्यके स्वरमें पतितोंको भी उठानेकी शक्ति है, बैंडमें वह शक्ति नहीं है। तब हमें झाँझ और पखावज जैसे सादे, सुन्दर और मीठे वाद्योंका त्याग क्यों करना चाहिए?

बैंड और झाँझ पखावजमें जितना भेद है उतना ही भेद हमारी वर्तमान और प्राचीन जीवन-पद्धतियोंमें है। यदि हमारी लड़ाई बैंड जैसी होगी तो वह टूट जायेगी। जैसे झाँझ पखावज में जुदा-जुदा तत्त्व हैं वैसे ही हमारी यह लड़ाई भी सुन्दर रहस्योंसे परिपूर्ण है।

यदि आप इन रहस्योंको ठीक-ठीक समझ लेंगे तो इनमें से अद्भुत परिणाम निकाल सकेंगे। आपका इतना उत्साह देखनेके बावजूद मुझे यह भय है कि इस लड़ाईमें नाटक जैसा अभिनय हो रहा है। हम कहते हैं कि जमीन जब्त हो जाये तो कोई चिन्ता नहीं, किन्तु मुझे लगता है कि हमारे मनकी गहराईमें भय है। यदि यह बात ठीक है तो हम हारेंगे और उसका हानिकर प्रभाव समस्त देशपर होगा। इसलिए चाहता हूँ कि हम इस लड़ाईको सत्य और धर्मके आधारपर अपनी प्राचीन संस्कृतिके अनुरूप अडिग होकर लड़ें।

यह कहा जाता है कि गुजरात सो रहा है। कुछ लोग मुझसे पूछते हैं कि गुजरात इस तरह ऊँघ क्यों रहा है? किन्तु गुजरात कुम्भकर्णी निद्रा ले रहा है, यह आरोप मुझे अनुचित लगता है। ठीक मध्याह्न कालमें आप इतने भाई और बहन यहाँ इकट्ठ हुए हैं इसे देखकर यह कैसे कहा जा सकता है कि गुजरात सो रहा है? फिर भी, हमारी निद्रा निश्चय ही उड़ गई है या हम अभीतक यह जागरणका अभिनय ही कर रहे हैं, मैं आपसे यह प्रश्न पूछना चाहता हूँ। इसका उत्तर आपके अन्तरमें से एक ही निकलना चाहिए कि अब यह अभिनय नहीं है, बल्कि आप सच्चे मनसे इस लड़ाई में सम्मिलित हो गये हैं। हमारी यह लड़ाई सत्यकी लड़ाई है, इसमें असत्य नहीं रह सकता। जब आप सरकारपर यह छाप डाल सकेंगे तब सरकार हमारी हो जायेगी। किन्तु यदि आप चालाकी अथवा दम्भ कर रहे होंगे तो सरकार नहीं झुकेगी। उदाहरणार्थं भावनगरके कुछ भाइयोंने उतावलीमें हड़ताल कर दी थी। उनको हड़तालका संचालन करना नहीं आया। उनमें कष्ट सहनकी शक्ति नहीं थी। उन्होंने महाराजासे माफी माँग ली। मजदूरी कम मिलती है, यह तो सर्वविदित है किन्तु हड़ताल करनेपर भी उनकी मजदूरी नहीं बढ़ी। उन्होंने माफी माँगी। इस बातसे मेरे हृदयको आघात लगता है। यह समझ में नहीं आता कि उन्होंने माफी क्यों माँगी। कहा जा सकता है कि महाजनने भी बीचमें पड़कर इन लोगोंकी लाज बिगाड़ी। मैं चाहता हूँ कि हमारे यहाँ ऐसा अवसर न आये। हमने तो शुद्ध सचाईसे [ राहतकी ] प्रार्थना की है। क्योंकि फसल चार आनेसे कम हुई है। हमने सोच-विचारकर ही यह कहा है कि हमें सरकारी लगान नहीं देना है। यह हमने जाग्रत अवस्थामें ही कहा है। हम माफी कदापि न माँगेंगे। सरकार हमारी जमीनें ले ले, हमें जेलमें डाल दे,— ये समस्त कष्ट एक पलड़े में रखे जायें और सत्य, टेक और आत्म-सम्मान दूसरे पलड़े में रखे जायें तो कौन-सा पलड़ा झुकेगा? हमारा संकल्प है कि हम आत्म-सम्मानको नहीं त्यागेंगे, प्रतिज्ञा भंग नहीं करेंगे। हमारी प्रतिज्ञाका