पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/३८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं है; और नीतिमें कोई सच्चा परिवर्तन किये बिना आप जो भी रिआयतें देंगे, उनमें न तो कोई शोभा रहेगी और न बल। आम जनतामें उनके प्रति सच्ची वफादारी पैदा नहीं हो सकेगी। सम्मेलनका उद्देश्य, अगर मैंने सही तौरपर समझा है तो, यही है कि आप आम जनताको प्रभावित करना चाहते हैं। भारतीय नेताओंके सामने सवाल यह है कि हिन्दुस्तानके लोगों में अंग्रेजों जैसी वफादारी किस तरह पैदा की जाये। मैं नम्रतापूर्वक कहता हूँ कि जबतक आप आम जनताके विश्वस्त नेताओंपर विश्वास रखनेको तैयार नहीं और विश्वासका जो अर्थ होता है, वह सब करनेको तैयार नहीं, तबतक वफादारी पैदा करना असम्भव है। अली भाइयोंके बारेमें मैं बता दूँ कि लोगोंके सामने उनके अपराधका कोई सबूत नहीं है। दुश्मनके साथ पत्र-व्यवहार करनेके इलजामसे उन्होंने जोरदार शब्दों में इनकार किया है। वर्तमान परिस्थितिके विषयमें जो मत अली भाइयोंका है, वही अधिकांश मुसलमानोंका है।

मैं महसूस करता हूँ कि दूसरे कारणोंसे भी मैं सम्मेलनमें कोई कारामद नहीं रहूँगा। विलायतकी डाकमें आये हुए अखबार मैंने अभी-अभी पढ़े हैं। उनमें गुप्त संधियोंके बारेमें चर्चा है। प्रकाशित बातें पढ़कर बहुत दुःख होता है। अखबारोंमें बताई गई संधियाँ यदि सचमुच हुई हों, तो मैं नहीं जानता कि अब मैं कैसे कह सकता हूँ कि मित्र-राज्योंका पक्ष बिलकुल न्यायपूर्ण है। मैं नहीं कह सकता कि इन समाचारोंका भारतके मुसलमानों पर क्या असर होगा। भारत-सरकारके लिए साम्राज्यकी सर्वोत्तम सेवा करनेका मार्ग यही है कि वह साम्राज्यीय सरकारको यह सलाह देनेकी हिम्मत करे कि इन सन्धियोंसे उसने अपने-आपको जिस बुरी और अनीतिपूर्ण स्थितिमें डाला है, उसमें से वह बाहर निकल आये। अगर यह साबित हो जाये कि अखबारों में प्रकाशित समाचार बिलकुल गलत हैं, तो मेरे बराबर आनन्द अन्य किसीको नहीं होगा।[१]

जबतक स्थानीय अधिकारी अपना काम-काज उसी तरह करते रहेंगे जिस तरह वे खेड़ामें कर रहे हैं, तबतक हिन्दुस्तान में भीतरी शान्ति नहीं रहेगी। मुझे विश्वास है कि वाइसराय यह तो हरगिज नहीं चाहते कि लोग अन्याय और जुल्मका कोई विरोध ही न

  1. गांधीजीको इन उक्तियोंका कारण क्या था, इस बातपर चार्ल्स फ्रीअर एन्ड्यूज़ नामक पुस्तकमें कुछ प्रकाश डाला गया है। गांधीजीने एन्ड्र्यूजको लिखा था कि मेरे युद्ध-सम्मेलन में भाग लेनेके लिए जाते समय रास्ते में मेरे साथ हो जाओ। “वहाँ जाते हुए गाड़ीमें एन्ड्यूजने अंग्रेजी न्यू स्टेट्समैन में कुछ कपटपूर्ण गुप्त संधियोंका हाल पढ़ा। इन संधियोंका रहस्योद्घाटन रूसके परराष्ट्र विभागने किया था। इनमें जो देश शामिल थे, उनमें एक ग्रेट ब्रिटेन भी था, हालाँकि उसने सार्वजनिक रूपसे यह घोषणा की थी कि इस स्वातन्त्र्य संग्राममें उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है। एन्ड्रयूजने अखबारको गांधीजीके आगे पटकते हुए कहा, ‘जब ये देश ऐसी दुरंगी चाल चल रहे हैं तब आप युद्ध-सम्मेलन में कैसे हिस्सा ले सकते हैं?” यह भी एक कारण था जिसके चलते गांधीजीने प्रारम्भ में सम्मेलन में भाग लेनेसे इनकार कर दिया था। किन्तु लॉर्ड चैम्सफोर्डने एक मुलाकात के दौरान इस समाचारका खण्डन करते हुए कहा कि यह तो कुछ स्वार्थी हलकोंकी बात जान पड़ती है। उन्होंने कहा कि मैं यह विश्वास नहीं कर सकता कि ग्रेट ब्रिटेन कोई ऐसी संधि करेगा जिसके अनुसार उसे कुस्तुनतुनियाको रूसके हाथों सौंप देना पड़े। इसी स्पष्टीकरणके आधारपर गांधीजीने आखिरकार सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार किया।