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पत्र: जे० एल० मैफीको

करें। मैं आशा रखता हूँ कि खेड़ामें लूट मचाकर लगान वसूल करनेका जो इरादा बाँधा गया है, वह एकदम रोक दिया जायेगा और खेड़ाके लोगोंकी न्यायपूर्ण माँगें मंजूर कर ली जायेंगी।

अनिवार्य फौजी भरती शुरू करने के विरुद्ध भी सरकारको मैं अच्छी तरह चेता देना चाहता हूँ। मुझे आशा है कि हिन्दुस्तानकी भूमिपर यह चीज कभी सफल नहीं होगी। किन्तु जबतक स्वेच्छापूर्वक भरती करने के सारे प्रयत्न ईमानदारीके साथ न कर लिये जायें और वे असफल न हो जायें, तबतक तो अनिवार्य सैनिक भरती हरगिज शुरू न की जानी चाहिए। अबतक जबरदस्ती फौजी भरती करनेकी जो बातें सुनी गई हैं, उन्हें दबा रखने में नेताओंने बहुत ही संयमसे काम लिया है, यह तो आप भी स्वीकार करेंगे। लेकिन मेरा खयाल है कि अब पानी खतरेके निशान तक पहुँच चुका है।

अन्तमें मैं बता दूँ कि ‘होमरूल’ के विचार आम जनतामें इतनी गहराई और व्यापकतासे घर कर चुके हैं कि निकट भविष्य में ‘होमरूल‘ मिल जानेके बहुत ही ठोस प्रमाण यदि नहीं जुटाये जायेंगे, तो लोगोंका सच्चा सहयोग नहीं मिल सकेगा।

अब आप समझ जायेंगे और शायद इसकी कद्र भी कर सकेंगे कि मैं समितियोंमें रहनेसे क्यों इनकार करता हूँ और बोलने में क्यों आनाकानी करता हूँ। मैं सम्मेलनमें भाग न लेकर ही सरकारके प्रति अपना सद्भाव सबसे अच्छे ढंगसे प्रकट कर सकता हूँ।

मेरी प्रार्थना है कि यह पत्र आप जल्दीसे-जल्दी वाइसरायके सामने पेश कर दें।

[हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी]

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

 

२५१. पत्र: जे० एल० मैफीको

सेंट स्टीफेंस कॉलेज
दिल्ली
अप्रैल २७, १९१८

प्रिय श्री मैफी,

आपका तार और इसी १९ तारीखका छोटा-सा पत्र, दोनों यथासमय मिल गये। तदर्थ धन्यवाद।

इधर स्थितिमें जो परिवर्तन हुए हैं, उनके कारण [अली] बन्धुओंकी रिहाई और भी जरूरी हो गई है। कांफी संकोच-विकोच और गहरे सोच-विचारके बाद में इसी निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि सम्मेलनमें भाग लेकर मैं उस उद्देश्यकी सेवा नहीं कर सकता, जिसके लिए सम्मेलन बुलाया जा रहा है। इसके कारण मैंने सर क्लॉड हिलको

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