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२५४. भाषण: युद्ध-सम्मेलनमें[१]

दिल्ली
अप्रैल २८, १९१८

इस प्रस्तावके समर्थकोंमें अपना नाम पाकर मैं अपनेको गौरवान्वित अनुभव करता हूँ। इसका अर्थ मैं पूरी तरह समझता हूँ और हृदय खोलकर इसका समर्थन करता हूँ।[२]

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० २२२५) की फोटो-नकलसे।

२५५. पत्र : जे० एल० मैफीको

दिल्ली
अप्रैल २९, १९१८

प्रिय श्री मैफी,

कामका भारी बोझ होनेपर भी आपने मेरा पत्र फिरसे पढ़ा और मुझे जवाब देनेका वक्त निकाला[३], यह आपकी कृपा है।

वाइसरायने जो कृपा-भाव प्रकट किया है, उसके लिए मेरा धन्यवाद उनतक पहुँचाइए।

आपके लिए मैं दो पत्र[४] पूरे कर रहा हूँ। वे आपको शिमलामें मिलेंगे। आपके यहाँ से रवाना होने से पहले मैं शायद ही उन्हें तैयार कर सकूँगा। उनमें से एक पत्रमें कुछ

  1. ये पंक्तियाँ “पत्र: जी० ए० नटेसनको”, १२-५-१९१८ से उद्धृत की गई हैं।
  2. गांधीजीने जन-शक्ति समिति (मैन पावर कमेटी) में दिये गये अपने भाषणका आत्मकथामें इस प्रकार उल्लेख किया है: “तो मैं सम्मेलनमें शामिल हुआ। वाइसराय भरतीसे सम्बन्धित प्रस्तावपर मेरा समर्थन प्राप्त करनेके लिए अत्यन्त उत्सुक थे। मैंने हिन्दी-हिन्दुस्तानी में बोलने की अनुमति माँगी। वाइसरायने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली, किन्तु सलाह दी कि मैं अंग्रेजीमें भी बोलूँ। मुझे कोई भाषण नहीं देना था। मैं इस आशयका केवल एक वाक्य बोला “अपने उत्तरदायित्वको पूरी तरह समझते हुए मैं प्रस्तावका समर्थन करता हूँ।” 'महादेवभाईनी डायरी," खण्ड ४ के अनुसार इससे पूर्व गांधीजीको वाइसरायसे यह सन्देश मिला था: “कृपया अपने सारे मित्रोंको आश्वस्त कर दें कि मैं जो-कुछ कर सकता था, वह कर चुका हूँ...। जो योजना पेश की गई है वह ठीक कांग्रेस-लीग योजना-जैसी तो नहीं होगी, किन्तु काफी हदतक उसके समान ही होगी । अत: मुझे आशा है, कल किसी प्रकारकी सौदेबाजी था मोलतोल नहीं होगा। सारा संसार बड़ी उत्सुकतासे इस बातकी प्रतीक्षा कर रहा है कि कल क्या होता है।...”
  3. देखिए “पत्र: जे० एल० मैफीको“, अप्रैल २८, १९१८ की पादटिप्पणी २।
  4. देखिए अगले दो शीर्षक।