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पत्र: वाइसरायको

निश्चित सुझाव दिये गये हैं कि आप मेरी सेवाओंका किस रूपमें उपयोग कर सकते हैं और दूसरे पत्रमें मैंने मौजूदा परिस्थितिके सम्बन्धमें अपने विचार पूरी तरह प्रकट किये हैं।

आप पर से मेरा विश्वास जल्दी नहीं हिल सकता। अधिकारोंके बारेमें आपने जो-कुछ लिखा है, उससे मैं पूरी तरह सहमत हूँ। लम्बा पत्र लिखकर आपका समय लेना मुझे ठीक नहीं लगता।

जब कभी आपको लिखता हूँ, हमेशा यही लगता है जैसे में कोई पाप कर रहा हूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया: होम, वार, पॉलिटिकल: अक्तूबर १९१८, संख्या २७

 

२५६. पत्र: वाइसरायको

दिल्ली
अप्रैल २९, १९१८[१]

महोदय,

जैसा कि आप जानते हैं, सावधानीसे विचार करने के बाद २६ अप्रैलके पत्रमें[२] निर्दिष्ट कारणोंसे मैंने अपना कर्त्तव्य समझकर आपको यह सूचित किया था कि मैं युद्ध-सम्मेलनमें उपस्थित न हो सकूँगा। पर आपने मुलाकातका अवसर देनेकी कृपा की; और उसके बाद मैंने उसमें भाग लेनेके लिए अपना मन तैयार कर लिया। यदि अन्य किसी कारणसे नहीं, तो आपके प्रति मेरे आदरभावके खयालसे ही सही।

शामिल न होने के कारणोंमें सबसे प्रबल कारण यह था कि लोकमान्य तिलक, श्रीमती बेसेंट और अली भाइयोंको इस सम्मेलनमें आमन्त्रित नहीं किया गया था। इन्हें मैं सबसे बड़े और समर्थ लोकनेता मानता हूँ। मेरा तो अब भी यही खयाल है कि उन्हें आमन्त्रित न करके सरकारने गम्भीर भूल की है। मेरा सादर सुझाव है कि अब जो प्रान्तीय सम्मेलन होनेवाले हैं, उनमें इन नेताओंको आमन्त्रित करके और उनसे यह कहकर कि वे

अपने परामर्शका लाभ देकर सरकारकी सहायता करें, वह अपनी भूल सुधार सकती है। मेरी विनम्र राय है कि कोई भी सरकार विशाल जनताका प्रतिनिधित्व करनेवाले इतने बड़े-बड़े नेताओंकी उपेक्षा नहीं कर सकती, भले ही उनके साथ सरकारका कितना ही

  1. इसका मसविदा हालाँकि सम्मेलन समाप्त होनेके तुरन्त बाद ही, इसी तिथिको तैयार कर लिया गया था, लेकिन लगता है कि यह शिमलामें वाइसरायके पास दूसरे दिन निजी सचिवके नाम एक सह-पत्रके साथ भेजा गया था; देखिए “पत्र: जे० एल० मैफीको”, अप्रैल ३०, १९१८।
  2. देखिए “पत्र: सर क्लोंड हिलको”, २६-४-१९१८।