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पत्र: वाइसरायको

हैं, उसके लिए बड़ीसे-बड़ी कुरबानी करनेको उन्हें तैयार रहना चाहिए। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि साम्राज्यपर घिरे हुए खतरेसे उसे मुक्त करनेके लिए हम बिना कुछ कहे-सुने पूरी तरह जुट जायें, तभी हम अपने ध्येय तक जल्दीसे-जल्दी पहुँच सकेंगे। यह सीधा-सादा सत्य स्वीकार न करना राष्ट्रके लिए आत्महत्या करने जैसा होगा। हमें समझना चाहिए कि यदि साम्राज्यको बचाने में हम अच्छी तरह भाग लेंगे, तो इसीसे हमको ‘होमरूल’ मिल जायेगा।

इसलिए यह तो मैं स्पष्ट देख सकता हूँ कि साम्राज्य की रक्षाके लिए जितने भी सैनिक दिये जा सकें, हमें देने चाहिए। पर आर्थिक सहायताके बारेमें मैं ऐसा नहीं कह सकता। मैं लोगोंकी हालत जानता हूँ और इसलिए कह सकता हूँ कि हिन्दुस्तान शाही खजानेको अपनी शक्तिसे कहीं अधिक धन दे चुका है। मुझे निश्चय है कि यह कहते हुए मैं अपने देशबन्धुओंके बड़े बहुमतकी राय ही व्यक्त कर रहा हूँ।

मेरे लिए और मेरा खयाल है कि अन्य बहुतसे लोगोंके लिए सम्मेलनका यही अर्थ है कि हमने एक सर्व-सामान्य उद्देश्यके लिए अपना जीवन अर्पित करनेकी दिशा में एक निश्चित कदम उठाया है। किन्तु हमारी स्थिति विषम है। आज हम साम्राज्यके बराबरके हिस्सेदार नहीं हैं। हमारे बलिदानोंका आधार बेहतर भविष्यकी आशा है। वह आशा कैसी है, यह अगर मैं साफ-साफ असन्दिग्ध भाषामें न बताऊँ तो आपके और अपने देशके प्रति बेवफाई करूँगा। मैं आज सौदा नहीं करना चाहता। लेकिन वह आपको जानना तो चाहिए ही। यदि यह आशा पूरी न हुई, तो साम्राज्य-सम्बन्धी हमारा आज तक का विश्वास एक भ्रम ही सिद्ध होगा।

एक और बात भी मुझे कह देनी चाहिए। आपने हमसे घरेलू झगड़े भूल जानेको कहा है। इसका अर्थ अगर यह हो कि अधिकारियोंके जुल्म और दुष्कृत्य हमें चुपचाप सहन कर लेने चाहिए, तो यह हमारे लिए असम्भव है। मैं हर संगठित अत्याचारका सारी शक्ति लगाकर प्रतिकार करूँगा। इसलिए आपकी अपील तो अधिकारियोंसे होनी चाहिए कि वे किसी भी मनुष्यको न सतायें, लोगोंसे सलाह-मशविरा करके काम करें और लोकमतका इतना आदर करें, जितना आजतक नहीं कि गया है। चम्पारनमें सदियोंसे होनेवाले जुल्मका विरोध करके मैंने ब्रिटिश न्यायकी सर्वोच्चता साबित कर दी है। खेड़ाकी जो प्रजा सरकारको गालियाँ देती थी, वह आज समझ गई है कि जब जनतामें अपने सत्यके लिए कष्ट सहनेकी शक्ति आ जाती है, तब सच्ची सत्ता सरकारकी नहीं, बल्कि जनताकी चलती है। इसीलिए आज उसमें कटुता कम हो गई है। वह कहने लगी है कि जो सरकार अन्यायके विरुद्ध व्यवस्थित एवं सम्मानपूर्ण अवज्ञाको सहन करती है, वह लोकमतकी सर्वथा उपेक्षा करनेवाली नहीं हो सकती। इसलिए मेरा यह विश्वास है कि चम्पारन और खेड़ामें मैंने जो काम किया है, यह इस युद्धमें मेरी सीधी, स्पष्ट और खास सहायता है। इस तरहका अपना काम बन्द करने के लिए अगर आप कहें तो गोया आप मुझसे मेरी साँस बन्द करनेके लिए कहेंगे। अगर मैं शुद्ध शरीरबलके बजाय आत्मबल यानी प्रेमबलको लोकप्रिय बनानेमें सफल हो जाऊँ, तो मैं जानता हूँ कि हिन्दुस्तानको ऐसा बना सकूँगा, जो सारी दुनियाकी नजर कड़ी हो जानेपर भी उससे लोहा ले सकता है। इसलिए कष्ट सहन करनेके इस सनातन