पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/३९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नियमको मैं अपने जीवनमें गूंथनेके लिए हमेशा अपनी आत्माको कसा करूँगा और इस नियमको स्वीकार करनेके लिए दूसरोंको निमन्त्रित करता रहूँगा। दूसरी किसी हलचलमें मैं यदि भाग लेता हूँ तो उसका उद्देश्य भी इसी सनातन नियमकी अद्वितीय श्रेष्ठता साबित करना ही है।

अन्तमें मैं आपसे ब्रिटिश मंत्रिमंडलको मुस्लिम राज्योंके बारेमें निश्चित आश्वासन देने की बात सुझानेकी प्रार्थना करता हूँ। आप जानते ही हैं कि हर मुसलमान इस विषयमें चिन्तातुर है। मैं एक हिन्दूके नाते उनकी आकांक्षाके प्रति उदासीन नहीं रह सकता। उनके दुःख हमारे होने ही चाहिए। इन मुस्लिम राज्योंके हकोंकी रक्षा करने, अपने धर्मस्थानों सम्बन्धी उनकी भावनाओंका आदर करने और हिन्दुस्तानकी ‘होमरूल’ सम्बन्धी माँगको समय रहते स्वीकार करनेमें ही साम्राज्यकी सुरक्षा है।

यह मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि मैं अंग्रेज जातिसे प्रेम करता हूँ और [साम्राज्यके प्रति] जो जगाना चाहता हूँ।

वफादारी अंग्रेजोंमें हो सकती है, वही वफादारी हरएक हिन्दुस्तानीमें

आपका आज्ञाकारी सेवक,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया: होम, वार (डिपॉजिट): अक्तूबर १९१८, संख्या २६

२५७. पत्र: जे० एल० मैफीको

नडियाद
अप्रैल ३०, १९१८

प्रिय श्री मैफी,

मैंने कलके[१] सम्मेलनमें जो घोषणा की है उसके अनुसार मैं सादर निवेदन करना चाहता हूँ कि मैं अपनी सेवाएँ अधिकारियोंको अर्पित करता हूँ, और वे जिस तरह भी उनका उपयोग करना चाहें, कर सकते हैं। हाँ, इतना अवश्य है कि मैं व्यक्तिश: किसीको भी―चाहे वह शत्रु हो या मित्र―न तो चोट पहुँचाऊँगा और न किसीकी हत्या करूँगा।

किन्तु यदि मैं बता दूँ कि मेरे विचारसे मेरी सेवाओंका सर्वोत्तम उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है, तो अच्छा होगा।

सर्वप्रथम तो मेरे कार्यको प्रभावकारी बनानेके लिए यह आवश्यक है कि मुझे छिंदवाड़ा जाकर अली भाइयोंसे मिलनेकी अनुमति दी जाये। मैं उनसे परामर्श करके सम्मेलनके उद्देश्योंके सम्बन्धमें उनके विचार जानना चाहूँगा। मुझे इसमें कोई सन्देह

  1. २८ अप्रैल; जान पड़ता है पत्र २९ अप्रैल को लिखा गया था।