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२६०. पत्र: रवीन्द्रनाथ ठाकुरको [१]

दिल्ली
अप्रैल ३०, [१९१८]

प्रिय गुरुदेव,

मैं चाहता था कि श्री एन्ड्र्यूजको और थोड़े समय अपने साथ रखता, फिर भी मुझे संदेह नहीं कि उन्हें आज रातको कलकत्तेके लिए रवाना हो जाना चाहिए। मैं जानता हूँ कि आजकल आपका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता। और आप चाहते हैं कि ऐसे समय आपके पास एन्ड्रयूज मौजूद रहें; इससे आपको शान्ति मिलेगी। आपको जबतक जरूरत हो, उन्हें अपने पास ही रखिये। हम इस समय देशमें एक महान् परिवर्तनके द्वारपर खड़े हैं। मैं चाहता हूँ कि देशके नवजन्मकी इस घटनाके मौकेपर सारी शुद्ध शक्तियाँ सशरीर देशमें ही मौजूद रहें। इसलिए आपको देशमें ही किसी जगह आराम मिल सकता हो, तो मैं आपसे और श्री एन्ड्रयूजसे प्रार्थना करूँगा कि अभी आप देशमें ही रहिये और समय-समय पर एन्ड्रयूजको मेरे पास भेजते रहियेगा। कभी-कभी उनका मार्गदर्शन मेरे लिए बड़ा कामका साबित होता है।

श्री अम्बालालने मुझसे आपको यह कहने के लिए कहा है कि उन्हें आपको और आपके अन्य साथियोंको अपने माथेरानवाले बँगलेमें अपने आदरणीय अतिथियोंके रूपमें ठहराने में बहुत खुशी होगी। वहाँ प्रवासका मौसम जूनके मध्य तक रहता है। श्री अम्बालाल, यदि आपकी वैसी इच्छा हो तो, ऊटीमें भी आपके निवासका प्रबन्ध करनेके लिए तैयार हैं। मेरा खयाल है कि ज्यादा अच्छा यह होगा कि फिलहाल आप माथेरान आकर रहें और गरमीका बाकी मौसम ऊटीमें बितानेके सवालपर उसके बाद निर्णय करें।

मुझे आशा और विश्वास है कि आप अपनी मौजूदा मानसिक श्रान्तिसे शीघ्र ही मुक्त होकर पुनः पूर्ण स्वास्थ्य लाभ करेंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (जी० एन० २२९१)

 
  1. गांधीजीने यह सुनकर कि दोनों विदेश-यात्रापर जानेवाले हैं, यह पत्र एन्ड्यूजके हाथों रवीन्द्रनाथ ठाकुरके पास भेजा था।