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२६३. वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको लिखे पत्रका अंश

[बम्बई
मई ३, १९१८]

आपकी ‘ना’ का मेरे मनमें सच्चा मूल्य था। सबकी ‘हाँ’ की कोई कीमत न थी।[१]

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

 

२६४. भाषण: अछूत परिषद् में[२]

बीजापुर
मई ५, १९१८

गांधीजीसे एक प्रस्ताव पेश करनेको कहा गया जिसमें कांग्रेस-लीग योजनाका समर्थन किया गया था और यह सिफारिश की गयी थी कि सरकार अछूतोंका भी स्थान स्वीकार करे। प्रस्ताव पेश करने से पहले सभाकी ओर दृष्टिपात करते हुए उन्होंने दो बार पूछा:

इस सभामें अछूत कितने हैं?

एक भी नहीं है, यह जानकर उन्होंने हिन्दीमें कहा:

तो बारह-बारह बजे तक हम यहाँ क्या करते हैं? जैसे तोता ‘नारायण’, ‘नारायण’ रटता है, वैसी ही स्थिति हमारी है। मैं भाई शिन्देसे[३] कहता हूँ कि वे ऐसी परिषदें करना छोड़ दें और किसी ठोस काममें ही लगे रहें। अस्पृश्यताके पापसे मुक्ति हृदय-शुद्धिसे ही मिल सकती है। हमारा काम हार्दिक भावनासे ही हो सकता है, कृत्रिमतासे नहीं। हम अस्पृश्यता-निवारणके लिए बहुत प्रस्ताव पास करते हैं, किन्तु उनका कोई परिणाम नहीं होता। प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास न हो सके, इसलिए एक सज्जनने कहा कि यह परिषद्अ व्यावहारिक है। मैं भी कहता हूँ कि यह परिषद्अ व्यावहारिक है।

  1. श्री शास्त्रीने बम्बईकी एक सभामें खेड़ा सत्याग्रहसे सम्बन्धित प्रस्ताव पेश करनेके विरुद्ध एक आपत्ति उठाई थी, वह यह कि प्रस्ताव पेश करनेके लिए अपेक्षित सात दिनकी सूचना नहीं दी गई थी। गांधीजी प्रस्ताव वापस लेनेके लिए सहमत हो गये। श्री शास्त्रीके अतिरिक्त, अन्य सभी प्रस्ताव वापस लेनेके विरुद्ध थे, लेकिन शास्त्रीने खेद प्रकट किया कि वे उससे सहमत नहीं हो सकते। प्रस्ताव वापस ले लिया गया था।
  2. यह द्वितीय दलित वर्ग मिशन सम्मेलन था। इसकी अध्यक्षता बी० एस० कामतने की थी।
  3. वी० आर० शिन्दे।