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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

बिना दूल्हेकी बरात-जैसी बात है। धर्मको जाने बिना विद्यार्थी निर्दोष आनन्द नहीं ले सकते। यह आनन्द लेनेके लिए शास्त्रोंका पढ़ना, शास्त्रोंका चिन्तन करना और विचारके अनुसार कार्य करना जरूरी है। सुबह उठते ही सिगरेट पीनेसे या निकम्मी बातचीत करनेसे न अपना भला होता है और न दूसरोंका भला होता है। नजीरने कहा है कि चिड़ियाँ भी चूँ-चूँ करके सुबह-शाम ईश्वरका नाम लेती हैं, किन्तु हम तो लम्बी तानकर सोये रहते हैं। किसी भी तरह धर्मकी शिक्षा पाना विद्यार्थीका कर्त्तव्य है। पाठशालाओंमें धर्मकी शिक्षा दी जाये या न दी जाये, किन्तु इस समय यहाँ आये हुए विद्यार्थियोंसे मेरी प्रार्थना है कि वे अपने जीवनमें धर्मका तत्त्व दाखिल करें। धर्म क्या है? धर्मकी शिक्षा किस तरहकी हो सकती है? इन बातोंका विचार इस जगह नहीं हो सकता। परन्तु इतनी-सी व्यावहारिक सलाह अनुभवके आधारपर देता हूँ कि तुम 'रामचरितमानस' के और 'भगवद्गीता' के भक्त बनो। तुम्हारे पास 'मानस' रूपी रत्न पड़ा है। उसे ग्रहण कर लो। किन्तु इतना याद रखना कि इन दो ग्रन्थोंकी पढ़ाई धर्मको समझनेके लिए करनी है। इन ग्रन्थोंके लिखनेवाले ऋषियोंका ध्येय इतिहास लिखना नहीं था, बल्कि धर्म और नीतिकी शिक्षा देना था। करोड़ों आदमी इन ग्रन्थोंको पढ़ते हैं और अपना जीवन पवित्र करते हैं। वे निर्दोष बुद्धिसे इनका अध्ययन करते हैं और उससे निर्दोष आनन्द लेकर इस संसारमें विचरते हैं। उनके मनमें स्वप्नमें भी यह शंका नहीं उठती कि राम थे या नहीं, उन्होंने जिस तरह रावणका वध किया उस तरह हम भी अपने शत्रुका वध कर सकते हैं या नहीं। वह तो शत्रुको सम्मुख देखते हुए भी रामकी सहायताकी याचना करके निर्भय रहता है। 'रामायण' के प्रणेता तुलसीदासके पास तो शस्त्रके रूपमें एक दया ही थी। तुलसीदास किसीका संहार नहीं करना चाहते थे। जो उत्पन्न करता है वही नाश कर सकता है। राम ईश्वर थें; उन्होंने रावणको उत्पन्न किया था, उन्हें उसका संहार करनेका अधिकार भी था। जब हम ईश्वरका पद प्राप्त करेंगे तब सोच लेंगे कि संहारका अधिकार हमें है या नहीं। इन महान् ग्रन्थोंके विषयमें मैंने ये कुछ शब्द कहनेका साहस इसलिए किया है कि एक समय मैं स्वयं संशयात्मा था। और मुझे अपने जीवनके नष्ट हो जानेका भय था। मैं उस अवस्थासे निकलकर श्रद्धालु हो सका हूँ। इन पुस्तकोंने मेरे ऊपर जो प्रभाव डाला है, उसका वर्णन करना मुझे उचित लगा। मुसलमान विद्यार्थियोंके लिए 'कुरान शरीफ' सबसे ऊँचा ग्रन्थ है। उन्हें भी मैं इस ग्रन्थका धर्मभावसे अध्ययन करनेकी सलाह देता हूँ। 'कुरान शरीफ' का रहस्य जानना चाहिए। मेरा यह भी विचार है कि हिन्दू-मुसलमानोंको एक-दूसरेके धर्म-ग्रन्थोंको विनयके साथ पढ़ना और समझना चाहिए।

इस रमणीय विषयको छोड़कर मैं फिर प्रकृत विषयपर आता हूँ। प्रश्न पूछा जाता है कि विद्यार्थियोंका राजनैतिक मामलोंमें भाग लेना ठीक है या नहीं? मैं कारण बताये बिना इस विषयमें अपनी राय बताता हूँ। राजनैतिक क्षेत्रके दो भाग हैं: एक सिर्फ शास्त्रका और दूसरा शास्त्रपर अमल करनेका। विद्यार्थियोंके लिए शास्त्रके प्रदेशमें जाना जरूरी है, किन्तु उसके व्यवहारके प्रदेशमें उतरना हानिकारक है। विद्यार्थी शास्त्रकी शिक्षा लेने या राजनीति सीखनेके ध्येयसे राजनीतिक सभाओंमें, कांग्रेसमें जा