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भाषण : बिहार छात्र-सम्मेलनमें

सकते हैं। ऐसे सम्मेलन उन्हें पदार्थपाठ देनेवाले साबित होते हैं। उनमें जानेकी उन्हें पूरी आजादी होनी चाहिए और जो प्रतिबन्ध अभी लगाया गया है उसे दूर करानेका पूरा प्रयत्न होना चाहिए। ऐसी सभाओंमें विद्यार्थी बोल नहीं सकते, राय नहीं दे सकते। किन्तु यदि पढ़ाईके काममें रुकावट न होती हो तो वे स्वयंसेवकका काम कर सकते हैं। मालवीयजीकी सेवा करनेका अवसर कौन विद्यार्थी छोड़ सकता है? विद्यार्थियोंको दलबन्दीसे दूर रहना चाहिए। तटस्थ या निष्पक्ष रहकर जनताके नेताओंके प्रति पूज्य भाव रखना चाहिए। उनके गुण-दोषोंकी तुलना करनेका काम उनका नहीं। विद्यार्थी तो गुणोंको ग्रहण कर लेनेवाले होते हैं; वे गुणोंकी पूजा करते हैं।

बड़ोंको पूज्य समझकर उनकी बातोंका आदर करना विद्यार्थियोंका धर्म है। यह बात ठीक है। जिसने आदर करना नहीं सीखा उसे आदर नहीं मिलता। धृष्टता विद्यार्थियोंको शोभा नहीं देती। इस बारेमें भारतमें विचित्र हालत पैदा हो गई है। बड़े बड़प्पन छोड़ते दिखाई दे रहे हैं या अपनी मर्यादा नहीं समझते। ऐसे समय विद्यार्थी क्या करें? मैंने ऐसी कल्पना की है कि विद्यार्थियोंमें धर्मवृत्ति होनी चाहिए। धर्मपर चलनेवाले विद्यार्थियोंके सामने धर्मसंकट आ पड़े तो उन्हें प्रह्लादको याद करना चाहिए। इस बालकने जिस समय और जिस हालतमें पिताकी आज्ञाको बड़े आदरके साथ तोड़ा, वैसे समय और वैसी हालतमें हम भी आदरके साथ उस प्रकारके बड़ोंकी आज्ञा माननेसे इनकार कर सकते हैं। इस मर्यादाके बाहर जाकर किया हुआ अनादर दोषमय है। बड़ोंका अपमान करनेमें राष्ट्रका नाश है। बड़प्पन सिर्फ उम्रमें ही नहीं, उम्रके कारण मिले हुए ज्ञान, अनुभव और चतुराईमें भी है। जहाँ ये तीनों चीजें न हों, वहाँ सिर्फ उम्रके कारण बड़प्पन रहता है। किन्तु सिर्फ उम्रकी ही पूजा कोई नहीं करता।

ऐसा प्रश्न पूछा जाता है कि विद्यार्थी किस प्रकारकी देशसेवा कर सकता है? इसका सीधा उत्तर यह है कि विद्यार्थी अच्छी तरह विद्या प्राप्त करे और ऐसा करते हुए तन्दुरुस्ती बनाये रखे और देशके लिए विद्याध्ययन करनेका आदर्श सामने रखे। मुझे विश्वास है कि ऐसा करके विद्यार्थी पूरी तरह देशसेवा करता है। विचारपूर्वक जीवन व्यतीत करके और स्वार्थ छोड़कर परोपकार करनेका ध्यान रखकर हम मेहनत किये बिना भी बहुत-कुछ काम कर सकते हैं। ऐसा एक काम में बताना चाहता हूँ। तुमने रेलके यात्रियोंकी तकलीफोंके बारेमें मेरा पत्र अखबारोंमें पढ़ा होगा। मैं यह मानता हूँ कि तुममें से ज्यादातर विद्यार्थी तीसरे दरजेमें सफर करनेवाले होंगे। तुमने देखा होगा कि मुसाफिर गाड़ीमें थूकते हैं; पान-तम्बाकू चबाकर जो छूँछ निकलती है उसे भी वहीं थूकते हैं; केले-सन्तरे वगैरा फलोंके छिलके और जूठन भी गाड़ीमें ही फेंकते हैं; पाखानेका भी सावधानीसे उपयोग नहीं करते, उसे भी खराब कर डालते हैं; दूसरोंका खयाल किये बिना सिगरेट-बीड़ी पीते हैं। जिस डिब्बेमें हम बैठते हैं, उस डिब्बेके मुसाफिरोंको आप गाड़ीमें गन्दगी करनेसे होनेवाली हानियाँ समझा सकते हैं। ज्यादातर मुसाफिर विद्यार्थियोंका आदर करते है और उनकी बात सुनते हैं। लोगोंको सफाईके नियम समझानेका बहुत अच्छा यह मौका छोड़ नहीं देना चाहिए। स्टेशनपर खानेकी जो चीजें बेची जाती है वे गन्दी होती हैं। ऐसी गन्दगी मालूम हो तो विद्यार्थियोंका कर्त्तव्य है कि वे ट्रैफिक मैनेजरका ध्यान उस तरफ खींचें। ट्रैफिक मैनेजर