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खड़ा-संकटपर सरकारी प्रेस विज्ञप्तिका उत्तर

व्यवस्थाके अधीन काम करना पड़ता है। उन्हें एक ऐसे राजकीय सेवा- विभागकी परम्पराओंका निर्वाह करना पड़ता है, जिसने अपनी प्रतिष्ठाको अपना दीन और ईमान बना लिया है, जो अपने-आपको भूल करनेकी सम्भावनासे लगभग परे मानता है, और जो शायद ही कभी अपनी भूल स्वीकार करता हो।

जहाँतक श्री देवधर और उनके साथी कार्यकर्ताओं द्वारा की गई जाँचकी बात है, प्रेस-विज्ञप्ति पढ़नेसे पाठकोंके मनपर यही छाप पड़ती है कि कमिश्नरने उनके सुझावोंपर ध्यान दिया है। किन्तु, सचाई यह है कि मुलाकातके दौरान, मेरे सामने ही, उन्होंने उनके द्वारा पेश की गई रिपोर्टकी सचाईमें सन्देह प्रकट किया था, और स्पष्ट शब्दों में कहा था कि वे जो राहत दे रहे हैं, वह रिपोर्टके कारण नहीं; क्योंकि रिपोर्ट के विषय में सार-रूप में उनका कहना यह था कि जहाँतक उसमें नई बातें कही गई हैं, वे सत्य नहीं है और जहाँतक उसमें सच्ची बातें कही गई हैं, वे नई नहीं है।

मातर ताल्लुकेकी विपत्तिका पूरा हाल बताकर मैं लोगोंको उबाना नहीं चाहता। इस ताल्लुकेके कुछ गाँवोंमें, जहाँ सिंचाई-नहरोंका भी प्रकोप हुआ है, लोगोंको दुहरी शिकायत है: (१) अतिवृष्टिके कारण फसलोंका आम तौरपर खराब होना, और (२) नहरों में बाढ़ आ जानेसे फसलोंकी पूरी बरबादी। दूसरे मामलेमें तो वे पूरी छूटके हकदार हैं। किन्तु, जहाँतक मुझे मालूम है, ऐसे बहुत-से मामलों में यह छूट नहीं दी गई है।

यह कहना सही नहीं है कि भारत सेवक समाज [सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी] ने ठसरा ताल्लुकेमें जाँचका काम इसलिए बन्द कर दिया कि वहाँ जाँचके लिए कोई मामला ही नहीं था। सचाई यह है कि उसने यह काम अनावश्यक समझा, क्योंकि मैंने लगभग प्रत्येक गाँवमें फसलोंकी जाँच करना तय कर लिया था। यही बात उसकी रिपोर्टमें भी कही गई है।

प्रेस-विज्ञप्तिमें मेरे जाँचके तरीकेको ‘अव्यवहार्य’ कहकर न्याय नहीं किया गया है। मैं अपने इस मतपर अब भी दृढ़ हूँ कि यदि काश्तकारोंकी बातोंपर भरोसा किया जा सकता है तो मेरे तरीकेसे जाँच करने पर जो भी निष्कर्ष निकलेंगे, सर्वथा विश्वसनीय ही होंगे। अपनी फसलोंकी उपजके बारे में स्वयं काश्तकारसे अधिक जानकारी और किसे हो सकती है? मैं यह मानने को तैयार नहीं हूँ कि लाखों व्यक्ति मिल-जुलकर झूठ बोलनेके लिए साजिश करेंगे, जब कि उन्हें उससे किसी बड़े लाभकी आशा भी न हो और कष्ट उठाना निश्चित हो। और यह तो असम्भव ही है कि हजारों लोग दस फसलों की भी―वास्तविक और अनुमानित―उपजके बारेमें आँकड़ोंको इस प्रकार रट रखें जिससे प्रत्येक मामले में कुल उपजके योगको देखने पर यह परिणाम निकले कि फसल चार आने से कम हुई। मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि मेरा तरीका ही ऐसा है, जिसमें

धोखा-धड़ीकी कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। इसके अतिरिक्त मैंने खरीफ और रबी दोनों फसलोंकी सरकारी ‘आनावारी’ को चुनौती दी थी। और जब मैंने ऐसा किया था, तब रबीकी फसल खेतों में ही खड़ी थी। अतः मैंने यह सुझाव दिया था कि अधिकारीगण इन फसलोंको अपने सामने कटवाकर उनकी उपजकी जाँच करके सही आनावारी मालूम कर सकते हैं। यह सुझाव मैंने विशेष रूपसे वड़यलके बारेमें दिया था। मेरा कहना यह की भी

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