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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो स्वयं कुछ पटवारी ही आगे आकर यह दिखानेको तैयार हैं कि अधिकारियोंने उनसे उनके द्वारा निकाली गई आनावारी बढ़ानेको कहा। लेकिन, यदि अब जाँचको अनावश्यक समझा जाता है तो[१] सरकार वसूली मुलतवी क्यों नहीं कर देती―विशेषकर अब जब स्पष्टतया बहुत थोड़े लोगोंसे वसूली करना शेष है? और उससे भी बड़ा कारण तो यह हैं कि यदि वसूली मुलतवी कर दी जाये तो सम्पन्न काश्तकार लगान चुका देनेको तैयार हैं।

स्पष्ट है, कमिश्नरने सिद्धान्तके जिस सवालकी हिमायत की है, सरकार अब उससे पीछे हट गई है।

वाइसरायने आपसी मतभेद भूल जानेका अनुरोध किया है। क्या यह अनुरोध सिर्फ काश्तकारों तक ही सीमित है, या कि अधिकारीगण भी लोगोंकी इच्छाका आदर करके तोषका वातावरण उत्पन्न करेंगे, खासकर जब लोगोंकी यह माँग तनिक भी अनैतिक अथवा अनुचित नहीं है?

यदि कष्टका मतलब भुखमरी है, तो में स्वीकार करता हूँ कि खेड़ाके लोग भूखों नहीं मर रहे हैं। लेकिन यदि लगान अदा करनेके लिए या खाद्यान्न खरीदनेके लिए अपना माल-असबाब बेचना कष्टकी निशानी है तो इस जिलेके लोगोंको काफी कष्ट है। मैं यह दिखाने को तैयार हूँ कि सैकड़ों लोगोंने या तो कर्ज लेकर या अपने मवेशी, वृक्ष अथवा अन्य बहुमूल्य सामान बेचकर अपना लगान चुकाया है। फिर भी, प्रेस-विज्ञप्तिमें जो सबसे गम्भीर चूक है वह यह कि जिस तरह प्रतिशोधकी भावनासे प्रेरित होकर लगानकी वसूली की जा रही है, उसका उसमें कोई उल्लेख नहीं है। काश्तकारोंको उनके तथाकथित दुराग्रहके कारण[२] एक सबक सिखाया जा रहा है। चार लाख रुपयेकी वसूलीके लिए उनपर तीन करोड़ रुपयेकी जमीनसे हाथ धो बैठनेका खतरा आन पड़ा है। बहुत-से मामलोंमें लगानके चौथाई हिस्से जितनी रकम जुर्मानेके रूपमें वसूल की गई है। क्या ऊपरकी इस कहानी में इस शंकाके लिए कोई आधार नहीं है कि अधिकारीगण गलत भी हो सकते हैं?

[अंग्रेजीसे]
न्यू इंडिया, ९-५-१९१८
 
  1. सरकारी विज्ञप्तिमें कहा गया था: “श्री गांधी तथा अन्य लोग निष्पक्ष जांचके लिए आग्रहपूर्वक जो प्रार्थना कर रहे हैं, सरकारको खेदके साथ कहना पड़ता है कि वह उसे स्वीकार नहीं कर सकती। काश्तकार वस्तुतः लगान वसूली स्थगित करने या लगान माफ करनेकी माँग अधिकारपूर्वक नहीं कर सकते; वे सिर्फ रियायतके रूपमें राहत माँग सकते हैं, किन्तु यदि हम यह मान भी लें कि सरकार इस प्रकारको समिति नियुक्त करनेको तैयार है तो भी यह स्पष्ट है कि इस प्रकारको जाँच-पड़तालसे कोई लाभ नहीं हो सकता, क्योंकि अन्तिम अधिकार राजस्व विभागके हाथमें ही है।
  2. कमिश्नरने चेतावनीके रूपमें जारी की गई अपनी विज्ञप्तिमें कहा था कि “जो लोग दुराग्रह कर रहे हैं, उन्हें भविष्य में जमीन नहीं दी जायेगी। सरकार अधिकारके दस्तावेजोंमें उनका नाम नहीं रखना चाहती, और जिनके नाम उसमें से निकाल दिये जायेंगे, उनके नाम फिर कभी दर्ज नहीं किये जायेंगे।”