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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रकट करे, तो उसपर अशान्ति पैदा करने की मंशाका आरोप नहीं लगाया जा सकता। मैंने जो कार्यक्रम बना रखा है, मेरा इरादा उसे अमली रूप देनेका है। इसलिए भारतके विभिन्न भागोंमें व्याप्त भावनाओंको जाननेकी मुझे कोई जरूरत नहीं है। किन्तु आप सब यहाँ पूर्व-निर्धारित विचार लेकर आये हैं, इसलिए मैं यहाँ अपनी स्थितिकी चर्चा नहीं कर सकता। मैं आपके साथ विचारोंका आदान-प्रदान करना, आपकी भावनाओंको और आपके निर्णयके पीछे जो कारण हैं उन्हें समझना तथा आपके मनकी तहमें उतरना चाहूँगा। लेकिन इसके लिए जब वातावरण और शान्त होगा, तभी आऊँगा। और जब हम प्रस्तावोंसे बँध नहीं गये होंगे, तब आपके हृदय चुरानेकी कोशिश करूँगा। मेरे खयालसे श्री केलकरने बिलकुल सही बात कही है। इस मंजिलपर तो हमें कांग्रेस-समितिका प्रस्ताव अवश्य स्वीकार कर लेना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

 

२६८. पत्र: महादेव देसाईको[१]

[नडियाद]
मई ९, १९१८

भाईश्री महादेव,

जो बात मैंने तुमपर अपना अत्यन्त विश्वास होनेके कारण कही थी, मुझे सपनेमें भी खयाल न था कि तुम उसका उलटा ही अर्थ करोगे। तुम मुझसे इतने अधिक गुँथ गये हो कि उसके कारण चम्पारन जानेमें तुम्हारे हृदयको आघात लगेगा, ऐसा मुझे लगा था। किन्तु यह तुम्हारी कल्पनामें भी कैसे आ सका कि तुम अपूर्ण सिद्ध हुए हो, इसलिए मैंने तुम्हें पृथक करनेके लिए यह टेढ़ी युक्ति ढूँढ निकाली है? तुम्हारे बारेमें मेरा खयाल यह था कि मेरी आशा तुम्हीं पूरी कर सकते हो और [इसीलिए] चम्पारन जानेका सुझाव दिया। मैं यह मानता हूँ कि बधरवाका काम दुर्गाकी शक्तिसे बाहर नहीं। सम्भव है, मेरा यह अनुमान गलत हो। अभी तो तुम्हारे चित्तकी शान्तिके लिए इतना ही कहता हूँ कि तुम्हारी की हुई समस्त कल्पना गलत है। मेरे सुझावका कारण यही है कि तुम दोनोंकी शक्तिके सम्बन्धमें मेरे मनमें आदर है। तुम्हारी सहायताके बिना मुझे असुविधा होगी, मैं यह बात रावजीभाई और देवदास दोनोंसे कह चुका हूँ। तुमने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है कि तुम्हारी जगह भरना लगभग असम्भव है। मैंने पोलकको जो कुछ लिखा है वह सत्य ही है। तुमने मुझे निराश नहीं किया है। मैंने तुम्हें अपने राजनैतिक कार्यकी सिद्धिके लिए, तुम्हारी कुशलता और चरित्रशीलताके

  1. यह महादेवभाईके ८ मईके पत्रके उत्तरमें लिखा गया था। गांधीजीने महादेवभाईको चम्पारन भेजनेकी इच्छा प्रकट की थी और महादेवभाईने अपने पत्र में उनको इस इच्छाका विरोध किया था।