कारण चुना है, एवं तुमसे मुझे कोई निराशा नहीं हुई है। इसके सिवा खास बात यह है कि तुम मुझे बड़े प्रेमसे खिचड़ी बनाकर खिला सकते हो। अधिक मिलनेपर।
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
२६९. पत्र: एस्थर फैरिंगको
[साबरमती
मई ११, १९१८][१]
तुम्हारा पत्र मिला। मैं―हम बड़े दिनके अवसरपर तुम्हारे आश्रममें आनेकी राह देखेंगे। उस समय तक मुख्य भवन बन जायेगा और मौसम बहुत सुहावना होगा।
मैं आशा करता हूँ कि वाइसरायको लिखा गया मेरा पत्र[२] और प्रैटके भाषणके जवाबमें लिखा गया मेरा पत्र,[३] दोनों, तुमने पढ़े होंगे। इन पत्रोंमें शासन-सम्बन्धी और जीवन-दर्शनके बारेमें मेरे विचार थोड़ेमें आ जाते हैं। वाइसरायके नाम मेरे पत्र में प्रेम और कष्ट-सहनके नियमके बारेमें मेरे विचार बहुत स्पष्ट रूपमें बताये गये हैं। “पैसिव रेजिस्टेंस” शब्द वास्तविक विचारकी बड़ी बेढंगी अभिव्यक्ति है। सच बात तो यह है कि मैं इस शब्दको कमजोरोंका हथियार मानता हूँ और नापसन्द करता हूँ । प्रेमके कानूनको यह बिलकुल गलत रूपमें व्यक्त करता है। प्रेम तो शक्तिका निचोड़ है। जब भयका सर्वथा अभाव हो, तभी प्रेमका मुक्त प्रवाह हो सकता है। प्रेमीजनों द्वारा दी गई सजा तो आत्मापर ठंडे मरहमके बराबर है।
अपने जिगरके लिए तुम सम्पूर्ण उपवासका प्रयोग नहीं करोगी? उबला हुआ पानी खूब पियो और उससे काम न चले, तो सन्तरेके रसमें पानी मिलाकर पियो। उससे कमजोरी मालूम हो और चक्कर आयें, तो बिस्तरमें पड़ी रहो। या अधिक अच्छा यह है कि पैर और शरीरका ऊपरी हिस्सा पानीसे बाहर रखकर ठंडे पानी बैठकरमें कटिस्नान करो। यह बहुत ताजगी लानेवाली चीज है। जिगरके रोगोंमें उपवाससे अच्छी कोई चीज नहीं है।
हृदयसे तुम्हारा,
बापू
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई