पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/४०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२७०. पत्र: जी० ए० नटेसनको

साबरमती
मई १२, [१९१८][१]

प्रिय श्री नटेसन,

यह रहा मेरा भाषण:[१]

“इस प्रस्ताव के समर्थकोंमें अपना नाम पाकर मैं अपनेको गौरवान्वित अनुभव करता हूँ। इसका अर्थ में पूरी तरह समझता हूँ और हृदय खोलकर इसका समर्थन करता हूँ।”

मुझे १०० रुपये-सहित आपका नोट मिला था। अब तो आपको उसका उत्तर नहीं चाहिए?

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजी के स्वाक्षरों में मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० २२२५) की फोटो-नकल से।

 

२७१. भाषण: ढुंडाकुवामें[२]

मई १३, १९१८

आप तो जानते ही होंगे कि मैं पन्द्रह दिन बाहर घूमकर आया हूँ। मैं दिल्लीसे बम्बई होता हुआ बीजापुर गया था। इन पन्द्रह दिनोंमें खेड़ामें क्या हुआ उसकी मुझे जानकारी है। मुझे पत्र अथवा तारसे सूचना मिलती रहती थी। आपने देखा होगा कि इस संघर्ष में हमारी पूरी नहीं तो लगभग पूरी जीत अवश्य हुई है। यह इस आधारपर कहा जा सकता है कि श्री प्रैटने जो धमकी दी थी वे उसे अमलमें नहीं ला सके हैं और उन्होंने जो प्रतिज्ञा की थी उसे भी वे पूरा नहीं कर सके। प्रतिज्ञाके दो प्रकार हैं―दैवी और आसुरी। दैवी प्रतिज्ञाका पालन मृत्युपर्यंत किया जाना चाहिए और उसमें

कोई विघ्न नहीं डाल सकता; जब कि आसुरी प्रतिज्ञा ऐसी है कि उसके विरुद्ध लड़ना ही चाहिए। सत्याग्रही आसुरी प्रतिज्ञाके विरुद्ध रात-दिन लड़ता है। श्री प्रैटकी प्रतिज्ञा आसुरी थी। मैंने श्री प्रैटका सदा आदर किया है। वे बुरे अफसर नहीं हैं; किन्तु जो बुरे अफसर नहीं हैं वे भी कभी-कभी गम्भीर भूलें करते हैं। श्री प्रैटने भी ऐसी ही

  1. १.० १.१ यह वह भाषण था जो गांधीजीने २९ अप्रैलको युद्ध-सम्मेलनकी जन-शक्ति समिति (मैन पावर कमेटी) में दिया था।,
  2. बोरसद ताल्लुकेका एक गाँव। गांधीजीके भाषणका विषय था, “आत्मबल बनाम दमन”।