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भाषण: ढुंडाकुवामें

भूल की थी। उन्होंने कहा था कि “आपकी जमीनें जब्त कर ली जायेंगी और आपके उत्तराधिकारियोंका नाम सरकारी कागजातमें दर्ज नहीं किया जायेगा।” इस बातको कोरी धमकीके रूपमें नहीं बल्कि अमलमें लानेके लिए उन्होंने जान-बूझकर कहा था कि “मेरी हुक्म-उर्दूली करनेवाले व्यक्तिको कड़ा दण्ड दिया जायेगा।” लेकिन वैसा नहीं किया जा सका क्योंकि उनका कथन आसुरी था।[१] हमारी प्रतिज्ञा आसुरी होती तो हमें भी विजय न मिलती। हमारी प्रतिज्ञा तो कष्ट सहनेकी है और वह आसुरी नहीं है। लोगोंने कष्ट सहन करनेकी प्रतिज्ञा लेकर कोई भूल की है, मैं इस बातको स्वप्नमें भी नहीं सोच सकता। इस संघर्षसे खेड़ा जिलेके सब लोगोंमें तेज आ गया है। खेड़ाके किसानोंको अपने अधिकारोंका भान हो गया है। अत्याचारी शासनके विरुद्ध खड़ा होना राजभक्ति है, जब कि मदान्ध शासनके वशमें होना राजद्रोह है। उसका कारण यह है कि इस मदान्ध शासनके वशमें होकर हम अत्याचारी सत्ताको मान्यता प्रदान करते हैं। हमें तो उन अधिकारियोंका विरोध करके उनका उद्धार करना है। जैसे प्रह्लादने हिरण्य-कशिपुका उद्धार किया वैसे ही अन्यायकारी अधिकारियोंके विरुद्ध संघर्ष करके हमें अत्याचारी शासनका उद्धार करना है। श्री प्रैटको अपनी पराजयसे अभी दुःख हुआ होगा; लेकिन कुछ समय बीतनेपर वे देख सकेंगे कि वे स्वयं जमीनें जब्त नहीं कर सके, यह बहुत अच्छा हुआ। यदि वे वैसा कर सके होते तो उन्हें अवश्य लोगोंकी हाय लगती और समस्त भारत में खेड़ाके आतंककी बात फैल जाती। वे इस स्थितिसे बच गये हैं।

हमें जब्तीके समय क्या करना चाहिए अब मैं यह समझाऊँगा। मेरे आशीसे लौटते वक्त डभाशीके लोगोंने मुझसे कहा था कि मैं वहाँ आ जाऊँ तो अच्छा हो। क्योंकि उस गाँवका मुखिया लोगोंके रुपये एक निश्चित स्थानपर रखवा देता है, तब [कुर्की-अधिकारी वहाँ] कुर्की करने जाता है। मैंने संसारमें ऐसा कहीं नहीं देखा। कोठीमें रुपया रखकर कुर्की कराना यह तो कुर्की-अधिकारीका स्वागत करनेके समान हुआ। हमसे जहाँतक बन सके हमें अत्याचारियोंके हाथमें रुपया न जाने देना चाहिए। मैं तो यही कहूँगा कि जो भाई घरोंमें ऐसी जगहपर रुपया अथवा जेवर रखते हैं जहाँ वह कुर्की-अधिकारीके हाथमें तुरन्त आ जाये, उन्हें प्रतिज्ञाका भान नहीं है। हम अधिकारियोंका सम्मान करें; लेकिन हमें उनकी मदद तो अवश्य ही नहीं करनी चाहिए। हम अपने घरमें आनेपर उनका स्वागत करें; लेकिन हमारे घरोंसे उन्हें रुपया या जेवर तो अवश्य ही नहीं मिलने चाहिए। रुपया अथवा जेवर रखकर अधिकारियोंको ले जाने देनेसे हम बच गये, ऐसा जो लोग कहते हैं वे लड़ाईके स्वरूपको नहीं पहचान पाये हैं। सरकार जिन वस्तुओंको कुर्क कर ले जाये उन्हें वापस खरीद लेना दर्शनीय हुंडी सिकारना कहा जा सकता है; लेकिन जहाँ ऐसा नहीं होता, बल्कि चालाकी बरती जाती है, वहाँ मुझे दुःख होता है। मैं डभाशीकी घटनासे चकित रह गया हूँ। आप भाइयों और बहनोंको मेरी सलाह है कि आप इस तरह अपनी वस्तुएँ न रखें कि सरकारी

  1. इस महीने में सरकारने भूमि-करकी बकाया रकम उगाहनेके लिए और भी ज्यादा जमीनें जब्त कीं। लेकिन बादमें जमीनोंकी जब्ती रोक दी गई और बकाया रकम चल-सम्पत्तिको नीलाम करके वसूल की जाने लगी।