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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर्मचारी उन्हें सहज ही उठा ले जायें। सरकारका काम इस तरह आसान नहीं बना देना चाहिए। जितना हो सके उतना विलम्ब करना आपका काम है। मुझे उम्मीद है कि आप ऐसा ही व्यवहार करेंगे। हमें उनकी आवभगत करनी चाहिए अर्थात् जो सीधा-सामान हम दे सकें वह उन्हें दे दें। कोई मित्र हो अथवा शत्रु, हमारे यहाँसे भूखा-प्यासा जाये यह हमें शोभा नहीं देता। अधिकारी भूखे-प्यासे गये, यह बात एक भी गाँवके सम्बन्धमें नहीं कही जानी चाहिए। कई लोग यह कहनेमें बड़ाई समझते हैं कि हमारे यहाँसे अधिकारीको पीनेका पानी भी नहीं मिला। लेकिन सत्याग्रही ऐसा नहीं कर सकता। सत्याग्रही स्वयं दुःख पा लेगा और कथित शत्रुको अपना भोजन देकर स्वयं भूखा रह लेगा। आप सत्याग्रहका यह सच्चा मर्म समझें। हमारे घरके और गाँवके व्यवहारसे प्रतिपक्षीके मनपर यह छाप पड़नी चाहिए कि यहाँ झूठ नहीं बोला जाता, अशिष्ट व्यवहार नहीं किया जाता और शत्रुको भी दुःख नहीं दिया जाता। यहाँ तो सब व्यवहार सत्य, नीति और विनयसे चलता है। हमारा काम है कि हम समस्त जन समाजको इस स्थितिपर पहुँचा दें। मुझे आशा है कि आप इस स्थितिको प्राप्त करेंगे।

सत्याग्रह कभी हारता नहीं, लेकिन जिन्हें सत्याग्रह करना नहीं आता, वे हारते हैं। यह संघर्ष कामधेनु और कल्पवृक्षके समान [फलदायी] है। आप इस रत्न चिन्तामणि-जैसे अमूल्य अवसरको न खोयें। जो लोग इस संघर्षको समझेंगे वे सच्चे सुख अंर्थात् स्वराज्यका उपभोग करेंगे।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 

२७२. पत्र: हनुमन्तरावको

[कठलाल]
मई १५, १९१८

[प्रिय हनुमन्तराव,]

श्री शास्त्रियरके भाषणपर[१] ‘हिन्दू’ की आलोचना निन्दनीय है; और मेरे खयालसे उसपर ध्यान न देना ही उसका सबसे अच्छा जवाब है। कस्तूरी आयंगार[२] ऐसे आदमी हैं, जिन्हें दलील या न्याय-बुद्धिकी अपीलसे कायल नहीं किया जा सकता। उनकी अपनी धारणायें हैं। और उनसे वे इतनी दृढ़तासे चिपके रहते हैं, जो शायद ही किसी और मनुष्य में पाई जाती होंगी। जो लोग शास्त्रियरको जानते है, उनपर ‘हिन्दू’की आलोचनाओंका कोई असर नहीं होगा। और जो कस्तूरी आयंगारके शब्दको वेदवाक्य मानते हैं, वे और किसीकी बात नहीं सुनेंगे। हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि शास्त्रियर अपने उच्च चरित्र और विद्वत्ता के कारण कट्टरसे-कट्टर दुश्मनके सामने खड़े

  1. जो उन्होंने युद्ध-सम्मेलनके अवसरपर किया था।
  2. कस्तूरी रंगा आयंगार, हिन्दू के संपादक।