पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/४१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ज्यादातर और मेरे खयालसे महत्त्वपूर्ण कार्य तो गुप्त रहे हैं और रहेंगे। वाइसरायको लिखा गया मेरा पहला पत्र[१] केवल उन्हींके लिए था। मैंने उसके द्वारा अपने कुछ विचार उन्हें सज्जन समझकर मित्रभावसे उनके सम्मुख रखे थे। उन्हें मैं जनताके सम्मुख कदापि न रखूँगा। उस पत्रमें प्रयुक्त विनम्र, किन्तु कटु भाषाको जनताके सम्मुख रखने से अनर्थ होगा। उनके साथ हुई बातचीतका जितना अंश बताया जा सकता है, उतना मैं बता चुका हूँ। मेरा दूसरा पत्र[२] मेरे भावी कार्यक्रमके बारेमें है और वह पहले की तुलनामें कुछ भी नहीं है।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

२७४. पत्र: प्राणजीवन मेहताको

[कठलाल]
मई १५, १९१८

[भाईश्री प्राणजीवन,]

खेड़ा की लड़ाईके बारेमें क्या लिखूँ? यह लड़ाई बड़ी जबरदस्त है। दो-तीन हजार रुपये सफर वगैरामें खर्च करके यह लड़ाई लड़ी जा सकती है, यह बात किसीकी कल्पनामें आ ही नहीं सकती। कोई पच्चीस हजार रुपया इकट्ठा हुआ होगा, यह वापस भिजवा दिया गया; और भी अनेक स्थानोंसे धनके प्रस्ताव आते हैं; इनके उत्तरमें मुझे इनकार लिखना पड़ता है। यदि मैं रुपया लेता हूँ, तो लड़ाईमें भ्रष्टता आती है, अनीति पैठती है और लोगोंका नैतिक पतन होता है। धन लेना अस्वीकार करनेसे मैं इन सब बातोंसे बच गया हूँ और लड़ाईको शुद्ध रख सका हूँ। इस लड़ाईको भारतके सभी लोगोंने देखा है और उसकी कीमत उनकी समझमें आ गई है। शास्त्रियरको समझमें अभी नहीं आई, इसका मुझे खेद है। कालान्तरमें आ जायेगी। वे स्वयं पवित्र-आत्मा हैं, इसलिए मैं निश्चिन्त हूँ। लड़ाईके औचित्यके बारेमें मुझे कोई शंका ही नहीं है।

[मोहनदासके वन्देमातरम्]

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 
  1. देखिए “पत्र: वाइसरायको”, २९-४-१९१८।
  2. देखिए “पत्र: जे० एल० मैफीको”, ३०-४-१९१८।