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२७५. भाषण: सन्देसरमें

मई १६, १९१८

इस गाँवके बहादुर लोगोंने बड़े साहसका परिचय दिया है। इन सभाओंकी एक विशेषता यह है कि उनमें स्त्रियाँ भी काफी संख्यामें आती हैं और जो-कुछ कहा जाता है ध्यानपूर्वक सुनती हैं। खेड़ाकी इस लड़ाईके बारेमें यह नहीं कहा जा सकता कि इसमें भाग लेनेवाले लोग, स्त्रियाँ या पुरुष, यह नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।

सत्याग्रहीका पहला कार्य इस बातकी जाँच करना है कि वह जो कुछ करने जा रहा है उसमें वह सत्यके रास्तेपर है या नहीं। और जब उसे इसका निश्चय हो जाये तो उसे अपने ध्येयसे आग्रहपूर्वक चिपटे रहना चाहिए। और उसके लिए मरण-पर्यंत लड़ना चाहिए। यदि हमें यह निश्चय हो गया है कि हमारी लड़ाई सत्य-की लड़ाई है तो हमें उसमें जुटे रहना चाहिए। जो मनुष्य सत्यके लिए मृत्यु तक स्वीकार करने को तैयार हो वह हमेशा सत्यका ही आचरण करता है।

सत्याग्रहके नामसे चलनेवाली लड़ाइयोंमें हारका कारण यह है कि हम हमेशा सत्यपर आरूढ़ नहीं रहते। सत्यमें हमें अपना लाभ दिखता है तो वह हमें अच्छा लगता है। किन्तु सत्याग्रहीको तो यह देखना चाहिए कि वह हरएक बातमें सत्यका आचरण करता है या नहीं। यदि हम सत्यका आचरण नहीं करते तो हम सत्याग्रही नहीं कहला सकते। कुछ लोग सत्यकी कीमत जानते हैं किन्तु कई बार सत्यके विरुद्ध व्यवहार करते हैं― किसी बातमें सत्यका आचरण करते हैं और दूसरी बात में असत्यका। यदि हम न्याय माँगते हों तो हमें दूसरेको भी पूरा न्याय देना चाहिए। हमारा आचार और हमारा विचार दोनों सत्य होने चाहिए। सब शास्त्र यही कहते हैं कि न्यायके मन्दिरमें मनुष्य पवित्र बनकर प्रवेश करे। जिस प्रकार हमें मन्दिरमें स्नानादि करके और मनको स्वच्छ करके जाना चा उसी प्रकार न्याय-मन्दिरमें भी पवित्र होकर प्रवेश करना चाहिए। जिनका मन मलिन है वे वहाँ नहीं जा सकते, यह दैवी नियम है। यदि हम न्याय चाहते हैं तो अपने प्रतिपक्षीको भी न्याय देना चाहिए। सत्याग्रहीका यही प्रथम कर्त्तव्य है।

अगास स्टेशनपर वल्लभभाईने मेरे हाथमें एक चिट्ठी दी। इस चिट्ठीमें जो-कुछ लिखा गया है वह यदि सही हो तो मुझे लगता है कि हमारा व्यवहार न्यायपूर्ण नहीं है। इस चिट्ठीमें सन्देसर गाँवके ढेढ़ लोगोंने यह कहा है कि पिछले चार वर्षोंसे गाँवके लोग उन्हें कुछ भी हिस्सा नहीं दे रहे हैं। मैं नहीं जानता कि यह बात सच है या झूठ। यदि सच हो तो उसका निर्णय तुरन्त कर देना चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि जब हम न्याय लेनेके लिए निकले हुए हैं तब हमें दूसरोंको भी न्याय देना चाहिए। आज सुबह मैं एक सज्जनसे कह रहा था कि खेड़ाकी प्रजाको यह लड़ाई बहुत अच्छी लग रही है क्योंकि इससे उन्हें आत्मोन्नतिका अवसर प्राप्त हुआ है। आजतक हम सरकारकी शासन-नीतिके खिलाफ लड़ रहे हैं। हम मानते