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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं कि ईश्वर हमारे साथ है। हम आजकल सरकारी अधिकारियोंको बेगार नहीं देते। कुम्हार, ढेढ़, भंगी आदिसे हम कहते हैं कि बेगार करनेकी जरूरत नहीं है। सरकार पैसा दे तो भी जिसे सुविधा हो और इच्छा हो वह जाये और जिसे न जाना हो वह न जाये। ढेढ़, कुम्हार, नाई आदिको अपने कामका पूरा पैसा मिलता हो तो भी यह उनका अधिकार है कि उन्हें सेवा करनी हो तो करें और न करनी हो तो न करें। हम भी उनका यह अधिकार स्वीकार करें तो कहा जायेगा कि हम शुद्ध स्वराज्यके योग्य हैं। हो सकता है कि हम इस सरकारको उलट दें। किन्तु यदि हम ऐसा समझें कि हमें कौन उलटनेवाला है तो यही माना जायेगा कि अत्याचारीके आसनपर अब हम आसीन हो गये हैं। कुछ अंग्रेज आलोचक कहते हैं कि तुम लोग प्रजाको जो पाठ पढ़ा रहे हो उसके लिए तुम्हें पछताना पड़ेगा। किन्तु मेरा विश्वास है कि जो कुछ मैं कर रहा हूँ उसे ठीक-ठीक जानता हूँ; उसमें मुझे कोई भूल दिखाई नहीं देती। मेरा विश्वास है कि अभीतक प्रजाको मैंने जो सलाह दी है वह ठीक है। सरकारके प्रति अपने कर्तव्यके विषयमें में प्रजाको जो सलाह देता हूँ वही सलाह में प्रजाके किसी एक वर्गको किसी दूसरे वर्गके प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन करनेके विषय में भी देते हुए हिचकूँगा नहीं। इसमें यदि मेरा सिर चला जाये तो भी मैं सत्य नहीं छोडूँगा। जिस प्रकार मेरा सिर सरकारको अर्पित है उसी प्रकार प्रजाको भी अर्पित है। यदि प्रजा सत्ताका दुरुपयोग करेगी और गरीबोंको हैरान करेगी तो मैं गरीब-वर्गसे भी यही कहूँगा कि सत्याग्रह करो और न्यायका मार्ग कभी मत छोड़ो । सुखपूर्वक रहनेका यही एक मार्ग है।

यह सत्याग्रहका शस्त्र जो हमारे हाथ आ लगा है अमूल्य है। हमारी आत्मा सत्यसे शुद्ध होनी चाहिए। इसमें जो विशेषताएँ हैं उनका अनुभव जिसे हुआ होगा वह दृढ़तापूर्वक कहेगा कि सत्यके सिवाय अन्य कोई उत्तम धर्म नहीं है। मैंने कहा है कि इस लड़ाईमें हम जीत चुके हैं। यह लड़ाई सिर्फ लगान मुलतवी कराने के लिए ही नहीं है। यदि हमारा लक्ष्य सिर्फ इतना ही होता तो हम उसे बहुत पहले पा चुके होते। इस लड़ाई में अमूल्य सिद्धान्त निहित है। सरकार अपनी बातको सच मानती है, प्रजा अपनी बातको। प्रैट साहब भी कहते हैं कि लड़ाई केवल लगान मुल्तवी करानेके लिए नहीं है उसका सम्बन्ध ३३ करोड़ लोगोंके हिताहितसे है। उसमें एक ओर प्रजाके अधिकारका सवाल है और दूसरी ओर सरकारके शासनका। हमें समझ लेना चाहिए कि प्रजाके बलकी तुलनामें सरकारकी सत्ता कुछ नहीं। ऐसी कोई सरकार आज तक पैदा नहीं हुई जो प्रजाके विरोधके सामने टिक सके। कोई प्रजा जब अपना अधिकार माँगनेका संकल्प करती है तो वह उसे लेकर ही छोड़ती है। इस लड़ाईमें हमें विनय या सभ्यता नहीं छोड़नी है; लेकिन साथ ही हम गुलामीका जीवन भी नहीं चाहते। सत्याग्रही कभी विनय नहीं छोड़ेगा; साथ ही वह अपना आग्रह भी नहीं छोड़ेगा। वह सरकारी अधिकारीको भूखा नहीं जाने देगा; उसे खिलायेगा, पिलायेगा और ठहरायेगा और इस प्रकार अपनी सज्जनताका परिचय देगा। सरकारी अधिकारी हमारा अभ्यागत है इसलिए वह शत्रु हो या मित्र हमें उसके साथ विनयका व्यवहार करना चाहिए। वह हमारे पाससे हमारी सम्मतिके बिना कुछ नहीं ले सकता। वह हमारे घर कुर्क करने