मिलेगा ही। मैं बासे सलाह करने के बाद यह पत्र लिख रहा हूँ। उन्होंने यहाँके भोजन और कार्यक्रम आदिके विषय में सब बातें जान ही ली होंगी।
मोहनदासके वन्देमातरम्
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी० एन० ३६१४) की फोटो-नकलसे।
२७७. पत्र: जे० एल० मैफीको
गाड़ी में
मई १८, १९१८
इस पक्के विश्वास के साथ कि २९ तारीखके पत्रमें[१] की गई मेरी प्रार्थना मंजूर कर ली जायेगी, मैं रंगरूटोंकी भरतीके लिए तैयारियाँ करनेमें लग गया हूँ। किन्तु आपका जवाब आये बिना काम शुरू नहीं करूँगा।[२]
[हृदयसे आपका,]
मो० क० गांधी
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
२७८. पत्र: मगनलाल गांधी को
आगराके समीप
[मई १८, १९१८]
मैंने तुमको बहुत व्याकुल कर दिया। लेकिन मेरा इरादा तुम्हें शान्ति देनेका
था। कठोरताको मृदुतासे जीता जाता है, घृणाको प्रेमसे, आलस्यको उत्साहसे और अन्धकारको प्रकाशसे। तुम्हारा प्रेम बूँद-बूँद करके टपकता है, लेकिन जिस प्रकार बूँद-बूँद करके होनेवाली वर्षा व्यर्थ जाती है उसी प्रकार प्रेमके सम्बन्धमें भी मैंने अनेक बार यही बात देखी है। जिस प्रकार मूसलाधार वर्षासे ही खेत पूरी तरह सिंचित होते हैं उसी प्रकार प्रचुर मात्रामें प्रवाहित प्रेम ही वैर-भावपर विजय पा सकता है।