पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/४१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८७
भाषण: पटनामें

ही स्वीकार करूँगा। इन सब बातोंसे तुम देखोगे कि हिन्दी सीखनेके उम्मीदवारके रूपमें तुम्हारा विचार करते समय यह सम्भावना तक मेरी कल्पनामें नहीं आई कि सोसाइटीसे तुम्हें सम्बन्ध विच्छेद करता है।

[हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी]

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
 

२८१. भाषण: पटनामें

मई २५, १९१८

गांधीजी गत मासकी २५ तारीखको पटना नगरमें होनेवाली एक सभामें शामिल होनेके लिए मोतीहारी से लौटे। जब वे चम्पारनमें थे, उन्होंने बेतियाके जिला मजिस्ट्रेट और अवर प्रमण्डल [सब डिविजन] के अधिकारीसे भेंट की, और इसके बाद आगे जाकर शिकारपुर, मधुबन तथा डाकामें अपने स्कूल देखे। मोतीहारीमें वे बाबू गोरखप्रसादके पास ठहरे। रैयत बड़ी संख्यामें उनके शिविरमें गई, किन्तु उनमें अधिकतर लोगोंसे कहा गया कि वे अपनी शिकायतें स्थानीय प्रतिनिधियोंके पास ले जायें। उनके आगमनसे, हमेशाकी तरह एक हलकी-सी हलचल फैल गई थी।

पटनामें सभाकी अध्यक्षता माननीय श्री पूर्णेन्दु नारायणसिंहने की। उसमें लोगों की असाधारण भीड़ थी―करीब ८,००० व्यक्ति शामिल हुए जिनमें ३०० से अधिक साधु भी थे। लगता था कि वस्तुतः जो भाषण दिया गया लोग उससे अधिक जोशीले भाषणकी आशा कर रहे थे, क्योंकि गांधीजीके आनेपर जो उत्साह दिखाई दे रहा था जैसे ही भाषण आगे बढ़ा काफी हवतक क्षीण हो गया।

भाषणके शुरूमें उन्होंने भारतको सार्वजनिक भाषाके विषयका उल्लेख किया और आशा की कि कुछ ही वर्षोंके अन्दर हिन्दू फारसी सीखेंगे और मुसलमान संस्कृत, ताकि दोनों भाषाएँ अन्तमें एक हो जायें। इसके बाद उन्होंने कहा कि चम्पारनकी समस्याओं या शाहाबादकी लज्जाजनक घटनाओंके सम्बन्धमें बोलनेके लिए मेरे पास समय नहीं है, किन्तु मेरा कहना है कि विशेष न्यायाधिकरणोंका सहारा लेकर हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच सद्भावना उत्पन्न नहीं होगी; यह प्रश्न तो पारस्परिक विचार-विमर्श तथा समझौते पर निर्भर करता है। उनके भाषणका मुख्य विषय था―“हमारी वर्तमान स्थिति।” भारतीयोंके लिए अपना रास्ता चुननेका समय आ गया है। इस प्रकारके सुअवसर किसी भी राष्ट्रके जीवनमें बार-बार नहीं आते। वे विशेषकर शिक्षित-वर्गके प्रति अपने विचार