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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रकट कर रहे थे। उन्होंने कहा, भारतसे कहा गया है कि वह एक और सेना तैयार करे। ७ या ८ लाख व्यक्ति तो पहले ही से भारतके बाहर सेवा कर रहे हैं और इस वर्ष सेनामें ५ लाखकी और भरती की जानी है। इन लोगोंको सरकार वेतन देती है और ये लोग सैनिक सेवासे अपनी रोजी कमा रहे हैं; [किन्तु] भारत उनपर गर्व नहीं कर सकता। उनके अस्तित्वसे उसे कोई लाभ नहीं है। जिस स्वशासनके लिए लोग शोरगुल मचा रहे हैं उस स्वशासनकी उनके मस्तिष्कमें अलग कल्पना है। निश्चित रूपसे हमारे पास स्वराज्यकी अपनी सेना होनी चाहिए और इसके लिए यह आवश्यक है कि हम, सरकार जो ५ लाख व्यक्ति चाहती है उसे दें और इस बातकी प्रतीक्षा न करें कि सरकार स्वयं उन्हें भरती करेगी। उन्होंने लोगोंको गणतन्त्रीय सेना खड़ी करनेकी सलाह दी। उन्होंने लोगोंसे अपने साथ आने तथा सरकार जहाँ भेजना चाहे वहाँ जानेके लिए कहा। (इस अवसरपर बहुत बड़ी संख्यामें लोग सभासे चुपचाप खिसक गये।) उन्होंने कहा कि, यदि हम स्वयं आदमी मुहय्या नहीं करेंगे तो सरकार जैसे-तैसे उन्हें प्राप्त कर लेगी और यदि आवश्यकता हुई तो भरतीको कानूनन लाजिमी बना देगी।

दूसरा विचार जो वे लोगोंके सामने रखना चाहते थे यह था कि स्वशासनका अर्थ अंग्रेजोंको भारतसे बाहर निकालना नहीं है। यह नहीं हो सकता। वे तो ब्रिटिश साम्राज्यके एक महान् भागीदार बनना चाहते हैं। भारतके एक महान् नेताने कहा है कि “हम लड़नेके लिए तैयार हैं, किन्तु इस शर्तपर कि आप भारतको स्वशासन देनेका दावा करें।” उन्होंने कहा, मेरे विचारमें स्वशासन प्राप्त करनेका यह प्रामाणिक मार्ग नहीं है। उन्होंने इस बातकी वकालत की कि भारतको बिना किसी शर्तके आदमी मुहय्या करने चाहिए। साम्राज्यपर आई हुई विपदा भारतकी विपदा है। अंग्रेज जातिके चरित्रकी दो विशेषताएँ हैं; एक तो यह कि जो लोग मरना और मारना जानते हैं, वे उनके मित्र हो जाते हैं और उन्हींकी सहायता करते हैं जो अपने पाँवोंपर खड़े होना जानते हैं; और दूसरे, वे उन लोगोंके साथ एकदिल हो जाते हैं जो अपने अधिकारोंका दावा करते हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए प्रारम्भमें ही अपनी शक्ति तथा दृढ़ निश्चयका प्रदर्शन करते हैं। स्वराज्यमें दो बातें अपरिहार्य होती हैं―सेना तथा वित्तपर अधिकार और इसीलिए मैं बार-बार यह कहता हूँ कि भारतने सैनिक शिक्षा प्राप्त करने, साम्राज्य की सहायताके जरिए स्वशासन प्राप्त करनेका अवसर खो दिया तो उसकी तत्सम्बन्धित महत्त्वाकांक्षा के सपने नष्ट हो जायेंगे। यह अवसर फिर कभी नहीं आयेगा। जो कमजोर होते हैं केवल वे ही शर्तें पेश करते हैं―जो शक्तिशाली होते हैं वे कोई शर्त पेश नहीं करते।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९१८