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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्हें जो भी दण्ड दिया जायेगा वे उसे स्वीकार करेंगे। हम केवल इसी तरह उन्नति कर सकेंगे।

यदि हम अपने सामान को सरकारी अधिकारियोंके हाथमें नहीं पड़ने देते तो यह चोरी नहीं है। जबतक यह उनके हाथों में नहीं आ गया है तबतक आप उसे दूसरे गाँव ले जा सकते हैं, आप उसे गाड़ सकते हैं। आप अपने मवेशियोंको हटाकर कहीं भी ले जा सकते हैं। किन्तु जैसे ही सरकारी कर्मचारियों या उनमें से किसी एक द्वारा वे जब्त कर लिये जाते हैं, तो फिर हमें उन्हें छूना भी नहीं चाहिए। हम जब्तियों में सरकारका साथ देने नहीं जा रहे हैं, हम अपने मवेशी उनके लिए नहीं पालते। किन्तु ज्यों ही कोई सरकारी अधिकारी हमारी भैंसको जब्त करता है, हमारा उसे उससे वापस छीननेका कोई अधिकार नहीं रहता। भाइयो तथा बहनो, मैं आपसे अपील करता हूँ कि आप ऊपर कहे अनुसार कार्य करें। अधिकारियोंसे बदतमीजीसे बात करना या [उनके आनेपर] अपने मवेशी खोलकर भगा देना हमारा काम नहीं।

कलक्टरने मुझे बताया कि रैयत संघर्ष में अत्यन्त सुन्दर ढंगसे कार्य कर रही है, किन्तु खंडालीके कुछ लोग जैसी चालें चल रहे हैं उनसे संघर्षका सौन्दर्य नष्ट हो जाता है। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप फिरसे ऐसा न करें। सच्ची वीरता प्रहार करने में नहीं, बल्कि प्रहार सहनेमें है। कल जब मैं ‘गीता’ पढ़ रहा था, तब मैंने क्षत्रियकी एक विशेषता पढ़ी ‘अपलायनम्’। इसका अर्थ है कि जब खतरा सामने आता है तब क्षत्रिय भागता नहीं, प्रत्युत अपने स्थानपर डटा रहता है। यदि हमारी सरकार जर्मनोंके साथ जैसे वह लड़ रही है वैसे न लड़े, यदि हमारे सैनिक जाकर उनके सामने निःशस्त्र होकर खड़े हो जायें व विस्फोटकोंका उपयोग न करें और कहें, “तुम हमपर प्रहार करो, हम मरनेको तैयार है!”, तो मेरा विश्वास है कि हमारी सरकार तुरन्त युद्धमें विजयी हो जायेगी। किन्तु ऐसे कार्यके लिए ‘संस्कार’ की आवश्यकता पड़ती है और यह भारतके पास पर्याप्त मात्रामें है। जो वनस्पति यहाँ उगती है, वह इंग्लैंडमें ठीक तरहसे नहीं उगेगी। इस संस्कारके बीज भारतमें खूब फूलेंगे-फलेंगे। शुद्ध वीरता सहनशक्तिमें होती है। यह वास्तविक सत्याग्रह है। खतरेको सामने देखकर भाग जाना कायरता है।

तब उन्होंने जिसने अपराध किया था उससे अपील की कि वह अपराध स्वीकार कर ले और कानून उसे जो दण्ड दे उसे भोग ले। इसके बाद उन्होंने रैयतसे सावधानी और साहसके साथ कार्य करनेके लिए कहा और प्रार्थना की कि वे सरकारी अधिकारियोंका आदर करें। अन्तमें उन्होंने कहा कि संघर्षमें सफलता तो कबकी मिल चुकी है; उन्होंने उनके महान् शौर्य और साहसके लिए बधाई दी।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ३-६-१९१८