पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/४२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२८३. पत्र: जे० क्रि ररको

साबरमती
मई ३०, १९१८

प्रिय श्री क्रिरर,[१]

अभी-अभी मुझे श्री मैफीका पत्र मिला है। उसमें उन्होंने दिल्ली सम्मेलनके तुरन्त बाद अपनी सेवाएँ देनेका मैंने जो प्रस्ताव किया था,[२] उसके सम्बन्धमें परमश्रेष्ठ गवर्नरसे सम्पर्क स्थापित करनेको कहा है। श्री मैफीके पत्रसे यह भी मालूम होता है कि मेरे और उनके बीच जो पत्र-व्यवहार हुआ, उसके कुछ अंश उन्होंने परमश्रेष्ठ को भी भेज दिये हैं। बड़ी कृपा हो, यदि यह सूचित करें कि मेरे प्रस्तावके सम्बन्धमें तथा श्री मैफीको लिखे अपने पत्रमें खेड़ाकी हदतक मैंने जो सुझाव दिये हैं उनके बारेमें परमश्रेष्ठका क्या विचार है।[३]

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

इंडिया ऑफिस ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्डस्: ३४१२/१८

२८४. पत्र: महात्मा मुन्शीरामको

साबरमती
वैशाख कृष्ण ५ [मई ३०, १९१८]

महात्माजी,

आपका प्रेम पूरित हृदयद्रावक खत मुझे मोला है। व खतका अभावके लीये उत्तर देनेमें विलंब हुआ। मैं चि० इंद्र को दिल्लिमें कह रहा था “क्या महात्माजी

  1. जेम्स किरर, बम्बईके गवर्नर लॉर्ड विलिंग्डनके सचिव।
  2. देखिए “पत्र: जे० एल० मैफीको”, ३०-४-१९१८।
  3. इस पत्रकी प्राप्तिकी सूचना देते हुए श्री क्रिररने १ जूनको गांधीजीको लिखा: “परमश्रेष्ठ आपके सहयोगका हार्दिक स्वागत करेंगे...। सरकार फिलहाल तो दिल्ली सम्मेलनके संकल्पको कार्यरूप देनेके उपाय सोच रही है जिनपर १० जूनको बम्बई में आयोजित सम्मेलनमें विचार किया सम्मेलन में विचार जायेगा। परमश्रेष्ठको आशा है कि आप उस सम्मेलनमें शामिल होंगे और तब उन्हें आपसे व्यक्तिशःमिलनेका अवसर प्राप्त होगा। ... सम्मेलनके परिणामस्वरूप जिन संगठनोंके निर्माणकी आशा है, उनके कार्य आरम्भ करने पर वे अधिक विस्तृत रूपसे बता सकेंगे कि किन दिशाओंमें आपकी सेवाओंका लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। जहाँतक खेड़ाकी लगान-वसूलीका सवाल है, परमश्रेष्ठका विचार है कि आन्तरिक प्रशासनके अन्य प्रश्नोंकी तरह ही इसका निपटारा भी इस मामलेके गुणदोषके आधारपर ही होना चाहिए...। उन्हें पूरा भरोसा है कि आप उनके विचारसे सहमत होंगे...।”