मुझको भूल गये है?” इसके पश्चात् दो तीन रोजमें आपका खत मीला। मैं खूब राजी हुआ। खेडा जिल्लाकी रैयत की जमीन खालसा की गई थी उसको वापस दे दी है। अब तो लोगोंको बहुत आर्थिक हानी नहि होगी। इस लड़तसे लोकोंको बड़ा जोर प्राप्त हो गया है।
आपका पत्र मुझको बल देता है। मेरे कार्यमें आर्थिक टूटी [त्रुटि?] आयगी तब आपका स्मरण अवश्य करूँगा।
आपका दर्द अब कमी होगा। ईश्वर आपकी रक्षा करे।
आश्रमवासी सब आपके आने की राह देखते है। अवध वीतनेसे हम सब अधीरे बन जावेंगे।
आश्रमवासी सब आपको नमस्कार कहते हैं।
आपका
मोहनदास गांधी
मूल हस्तलिखित पत्र (जी० एन० २२०७) की फोटो-नकलसे।
२८५. पत्र: मगनलाल गांधीको
अहमदाबाद,
मई, १९१८[१]
सरकार लड़ रही है। वह मुश्किलमें है, और हम लोग उसके सहयोगसे स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हैं। हम अर्थात् प्रजा। किन्तु हम जबतक इसके योग्य नहीं बनते तबतक स्वराज्य नहीं प्राप्त कर सकते। इस योग्यताका एक निश्चित भाग तो यह है कि हम सरकारके दुःखमें भाग लें। हम आश्रम चलाते हैं उसमें हमारा उद्देश्य चरित्रका विकास करना है। तब क्या आश्रमवासियोंका यह कर्त्तव्य नहीं है कि वे सरकारको मदद देनेका अपना अभिमत बतायें? लड़ाईके अन्तमें हम [स्वराजके] अधिक योग्य होंगे। मुझे लगता है कि हम युवाओंको तो जाना ही चाहिए। एक व्यक्ति बच्चोंको लेकर यहाँ रहेगा। अपना विचार तुरन्त बताना।
बापूके आशीर्वाद
यदि हम जायेंगे तो दूसरोंको भी साथ ले जायेंगे।
- गांधीजी के स्वाक्षरों में मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७३१) से।
- सौजन्य: राधाबेन चौधरी
- ↑ यह निश्चित नहीं किया जा सका कि यह पत्र किस दिन लिखा गया था।