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२८६. पत्र: ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ को[१]

साबरमती
जून २, १९१८

सम्पादक
‘बॉम्बे क्रॉनिकल’
महोदय,

इसके साथ ‘इंडियन ओपिनियन’ में प्रकाशित सामग्रीसे लिये गये कुछ उद्धरण भेज रहा हूँ। आशा है आप उन्हें अपने पत्र में स्थान देंगे। प्रकाशनकी इस प्रार्थनामें मैं संकोच करनेका कोई कारण नहीं देखता क्योंकि इनका सम्बन्ध भारतसे गये हुए लगभग दो लाख प्रवासी भारतवासियोंके हिताहितसे है। जोहानिसबर्ग-स्थित ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष श्री अहमद मुहम्मद काछलियाने संलग्न सामग्रीमें उल्लिखित मामलोंमें एकके सम्बन्ध में निम्नलिखित सूचना तार द्वारा भेजी है:

पाँच तारीखको आम सभाने रेलवे विनियमोंके १९वें खण्डके प्रति जोरदार विरोध प्रकट किया। निश्चय हुआ कि भारतवर्षमें शुभषियोंको तार दिया जाये। विनियमों द्वारा टिकट देने, डिब्बोंमें बैठाने और हटाने, प्लेटफार्मोंपर बैठने-ठहरनेके स्थानों के बारेमें कानूनन रंगभेद लागू किया गया है, और छोटे अधिकारियोंको अधिकार दिया गया है कि बिना कारण बताये जिसे जहाँ चाहें हटा दें। कृपया उपयुक्त अधिकारियोंसे समुचित दरख्वास्त करें। जबतक माँगी हुई राहत नहीं मिलती, समाज एक मतसे अधिकारोंकी माँग करेगा।

दक्षिण आफ्रिका आठ वर्षों तक सत्याग्रहका जो आन्दोलन चला था उसमें श्री काछलियाने बड़ी दृढ़तापूर्वक कार्य किया था। उस लड़ाईके दौरान वे कंगाल हो गये, और भारतके सम्मानके लिए उन्होंने जेलको स्वीकार किया। अतएव “जबतक माँगी हुई राहत नहीं मिल जाती, समाज एकमतसे अधिकारोंकी माँग करेगा“ इन शब्दोंका अर्थ कोई भी आसानीसे समझ सकता है। यह कोई धमकी नहीं है, बल्कि एक ऐसे समाजकी मनोवेदनाका मर्मभेदी चीत्कार है जिसके आत्म-सम्मानको चोट पहुँचाई गई है।

यह तो स्पष्ट है कि दक्षिण आफ्रिकाकी गोरी जनतापर इस युद्धका, जो कि रैयत, या दुर्बल जातियोंकी रक्षा करनेके नामपर लड़ा जा रहा है कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा है। उनका रंग-द्वेष इस तथ्य के बावजूद कम नहीं हुआ है कि दक्षिण आफ्रिकामें रहनवाले भारतीयोंने एक डोली वाहक स्वयंसेवक दल संगठित किया है जो पूर्वी आफ्रिकामें जनरल स्मट्सके नेतृत्वमें जानेवाली सेनाके साथ बहादुरीके साथ काम कर रहा है।

  1. इसे दक्षिण आफ्रिका में भारतीय-विरोधी कानून (ऐण्टी-इंडियन लेजिस्लेशन इन साउथ आफ्रिका) शीर्षकसे छापा गया था। लगता है कि यह पत्र सामान्यतथा सभी पत्रको भेजा गया था।