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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर रहा है। पूर्व आफ्रिकामें जनरल स्मट्सके पहुँचने के बादसे ही एक भारतीय-आहत-सहायक दल कार्य करता आ रहा है।

ये कागजात दो भागों में विभक्त हैं: एक भाग नये बनाये गये रेलवे विनियमोंसे सम्बन्धित है। ये विनियम अपने आपमें बिलकुल स्पष्ट हैं। इसकी कल्पना नहीं की जा सकती कि भारतीय यात्री स्टेशन के प्लेटफार्मों, डिब्बों तथा टिकट-कार्यालय आदि स्थानों के उन्हीं भागोंमें जा या बैठ सकते हैं जो उनके लिए नियत किये गये हैं। तिसपर भी प्रथम या द्वितीय श्रेणीके टिकटोंके लिए तो उन्हें टिकट देनेवाले क्लर्ककी सनकपर निर्भर करना पड़ता है, क्योंकि टिकट देनेवाले बाबूको अधिकार है कि यदि कोई भारतीय उसकी दृष्टिमें अच्छी वेशभूषामें नहीं है तो वह उसे टिकट देने से इनकार कर दे।

दूसरे भागमें जो कागज हैं उनसे यह स्पष्ट होता है कि संघ-सरकारके विवेकहीन कृत्यके परिणामस्वरूप देशी रियासतोंमें पैदा हुए वे भारतीय जो दक्षिण आफ्रिकामें जाकर बस गये हैं किस प्रकार महत्त्वपूर्ण कानूनी अधिकारसे वंचित कर दिये गये हैं। यदि सर्वोच्च न्यायालयका निर्णय कानूनकी रूसे सही है तो स्पष्ट है कि कानून बुरा है; वह बदला जाना चाहिए। और यदि ऐसा नहीं है तो संघ-सरकारको स्थानीय अन्तःपरिषद् [प्रिवी कौंसिल] में की गई अपीलका समर्थन करना चाहिए और कानून रद करवा देना चाहिए। बड़ौदा रियासतके हजारों भारतीय वर्षोंसे दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए हैं। पीड़ित पक्षकी प्रार्थनाका विरोध करते समय सरकारको समझ लेना चाहिए था कि वह उन भारतीयोंके उचित अधिकारोंके हितमें, जो प्रत्येक अर्थ में ब्रिटिश प्रजा हैं, खतरा पैदा करनेकी जोखिम उठा रही है।

मुझे पूर्ण आशा है कि इस पत्रके साथ आपको भेजे गये कागजोंमें जिस गलतीका उल्लेख है, उसे ठीक करनेके लिए आप तार भेजकर आवश्यक कदम उठायेंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इंडिया: उद्योग और वाणिज्य: जून १९१८: संख्या ५