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पत्र : मगनलाल गांधीको

प्रार्थना है और यही आग्रह है कि तुम जैसा पढ़ो और समझो, वैसा ही आचरण करो। वैसा करने में ही उन्नति है।

[गुजरातीसे]
महात्मा गांधीनी विचारसृष्टि


५. पत्र : मगनलाल गांधीको

मोतीहारी
मंगलवार [अक्तूबर १६, १९१७][१]

चि॰ मगनलाल,[२]

चिताएँ[३] देखकर तुम क्षण-भरके लिए विचलित हो उठे, इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं। यदि लोग नियमानुसार संयमपूर्वक रहें तो मृत्यु भी समयपर आये तथा चिताएँ स्वाभाविक लगने लगें। आँधी चलनेपर जब कच्चे फल टूटकर गिरने लगते हैं तब हम विचलित हो उठते हैं। पके फलोंके गिरनेसे हमें सन्तोष होता है। यही बात मानव-जीवनके साथ भी है। प्लेग आदि भयंकर तूफानोंके आनेपर जब लोगोंकी आकस्मिक मृत्यु होने लगती है, तब हम दुःखी हो उठते हैं। जहाँ ऐसा न हो वहाँ सतयुग है। मृत्युसे भय न हो, ऐसा युग लाना हमारा काम है। यदि हम जितना चाहिए उतना प्रयत्न करें तो हमारे लिए सतयुग आ गया समझो। हमें मौतके लिए तैयार रहकर अपना जीवन निर्भय बिताना चाहिए। ऐसे जीवनकी शिक्षा देना ही आश्रमका उद्देश्य है। तुम सब बहुत बड़ा काम कर रहे हो। तम्बूमें रहकर कठिनाइयाँ झेलना अच्छा है। बँगले में पड़े रहना होता तो हम सबको नीचा देखना पड़ता। तम्बूमें रहनेसे तुम सबके जीवनका सच्चा निर्माण हो रहा है। वहाँ तुम शिक्षा प्राप्त कर रहे हो; लोगोंके सामने उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हो, प्रकृतिसे मुकाबला करना सीख रहे हो। ऐसा जीवन जो चाहे बिता सकता है।

मैं मजेमें हूँ। भड़ौंचमें काम पूरा करनेके बाद ही मैं आश्रम आ सकूँगा।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ५७१८) से।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी

 
  1. गांधीजीको भड़ौंच यात्राके उल्लेखसे प्रतीत होता है कि यह पत्र उनके १९ अक्तूबर, १९१७ को भड़ौंच रवाना होनेसे पहले ही लिखा गया था।
  2. छगनलाल गांधीके भाई और गांधीजीके निकट-सहयोगी।
  3. अहमदाबादके समीप साबरमती नदीके किनारे गांधीजीने जून, १९१७ में साबरमती आश्रमकी स्थापना की थी। इसके एक ओर जेलखाना और दूसरी ओर श्मशान घाट था। श्री मगनलालके पत्रमें यहींकी चिताओंका उल्लेख रहा होगा।