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६. भाषण : व्यापारियों द्वारा आयोजित स्वागत-समारोहमें[१]

भड़ौंच
[अक्तूबर १९, १९१७ के बाद]

व्यापारियोंके पास बुद्धि तथा धन आदि तो होते ही हैं। इनके बिना उनका काम ही नहीं चल सकता। पर अब [इसके साथ-साथ] उन लोगोंमें देश-भक्तिकी प्रबल भावना भी होनी चाहिए। देश-भक्ति धर्मकी दृष्टिसे भी आवश्यक है। यदि देश-भक्तिकी भावना धार्मिक वृत्तिसे उद्भूत हो, तो उसका स्वरूप परम तेजस्वी होगा। इसलिए यह आवश्यक है कि व्यापारी-वर्गमें देश-प्रेमका भाव जगाया जाये।

व्यापारी लोग आजकल सार्वजनिक कामोंमें पहलेकी अपेक्षा अधिक हिस्सा लेते हैं। यदि वे देश-भक्तिकी भावनासे प्रेरित होकर राजनैतिक हलचलोंमें भी हाथ बँटाने लगें तो स्वराज्यको हाथपर धरे आँवलेके समान सहज प्राप्य समझिए। आप लोगोंमें से कुछ सोचते होंगे कि यह कैसे हो सकता है। किन्तु मैं दावेके साथ कह सकता हूँ कि जैसे ही व्यापारी-वर्गके मनमें देश-भक्तिकी भावनाने घर किया कि हमें स्वराज्य प्राप्त हुआ।

स्वराज्य-प्राप्तिकी चाबियोंमें सोनेकी चाबी तो स्वदेशीका व्रत[२] ही है। अपने देशमें लोगोंसे स्वदेशी-व्रतका पालन करवाना व्यापारियोंके हाथमें है, और व्यापारी ही इसे लोक-प्रिय भी बना सकते हैं। आपसे नम्र निवेदन है कि आप लोग इस कार्यको एक बार अपने हाथमें लें तो फिर देखेंगे कि आप कैसे-कैसे आश्चर्यजनक काम कर सकते हैं।

ऐसा प्रतीत होते हुए भी मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि इस देशमें स्वदेशीके चलन और आन्दोलनका सत्यानाश व्यापारी-वर्गने ही किया है। वे देशी मालके बदले लोगोंके सामने विदेशी माल पेश करते हैं और भाव बढ़ाते चले जाते हैं। अभी हालमें लोगोंने सरकारसे बंगालमें भाव बढ़ाये जानेके बारेमें शिकायतें की हैं और उनमें से एक शिकायत गुजरातके विरुद्ध भी है। कहा गया है कि धोतियोंका दाम बहुत अधिक बढ़ गया है। ये धोतियाँ वहाँ गुजरातसे भेजी जाती हैं। आप पैसा कमायें, लेकिन सही तरीकेसे; बुरे तरीकोंसे नहीं। बेईमानीका सहारा कभी नहीं लेना चाहिए।

व्यापारी-वर्ग ही भारतकी शक्ति है। यह शक्ति सैन्य-शक्तिसे भी अधिक है। युद्धकी जड़ भी व्यापार है और युद्धकी कुंजी भी व्यापारी-वर्ग ही है। पैसा व्यापारी लोग ही जुटाते हैं और उसीके बलपर सेना खड़ी की जाती है। इंग्लैण्ड और जर्मनीकी शक्तिका आधार वहाँके व्यापारी-वर्ग ही हैं। किसी भी देशकी समृद्धि उसके व्यापारी-वर्गपर ही निर्भर करती है। मुझे व्यापारी-वर्गसे अभिनन्दन-पत्र मिला। इसे मैं अच्छा

 
  1. अभिनन्दनपत्रके उत्तरमें।
  2. विदेशी वस्तुओंका बहिष्कार करनेका यह आन्दोलन बंगालमें १९०५ में आरम्भ हुआ था; देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ९७।