देखना होगा कि हमारी हँसी न उड़े। हमें मामलतदार साहबके आदेशका दुरुपयोग करनेकी इच्छा नहीं करनी चाहिए। यदि आप मेरी सलाहके अनुसार कार्य करेंगे तो मुझे विश्वास है कि आपकी प्रतिज्ञा आपके लिए अत्यन्त लाभप्रद सिद्ध होगी और दूसरे लोग आपका आदर करेंगे। हमें निर्मल अन्तःकरणसे काम करना चाहिए। जब यह कहा गया था कि सरकार सही है और हम गलतीपर हैं, तब हमें कितना बुरा लगा था? अब सरकार कहती है कि हम लगान अदा करें या न करें यह हमपर निर्भर करता है। इसलिए हमारा दुहरा कर्तव्य हो गया है। जो लोग लगान दे सकते हैं उन्हें तुरन्त दे देना चाहिए। यदि वे नहीं देते तो हमें उनपर अपना प्रभाव डालना होगा। और दूसरा यह कि आप गरीब खातेदारोंकी सूची तैयार करें और इसके तैयार करनेके बाद अपना लगान अदा कर दें। १० जूनको बम्बईमें युद्ध सम्मेलन है। मुझे आशा है कि इस प्रकारके आदेश, जैसे कि इस गाँवमें दिये गये हैं, अन्य गाँवोंमें भी जारी कर दिये जायेंगे और मैं गवर्नरसे यह कह सकूंगा कि हमारा संघर्ष समाप्त हो गया है।[१]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ५-६-१९१८
२८९. भाषण: नवागाँवमें
जून ३, १९१८
मेरी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए में अधिक नहीं बोलूँगा। लेकिन नवागाँव और नायकाके लोगोंने बहुत ही साहसका परिचय दिया है और बहुत अच्छा काम किया है। नावली और खंडालीके कुछ लोगोंने सीमाका उल्लंघन किया है। वे कुर्क की हुई भैंसोंको छुड़ा लाये और अधिकारियोंके कपड़ोंमें कौंचकी फलियाँ रख आये। यह सत्याग्रह नहीं, वरन् दुराग्रह है। हमारी प्रतिज्ञा तो सिर्फ यही थी कि हम रुपया नहीं देंगे। अधिकारी समझते हैं कि वे आकाशसे उतरे हैं। सरकारी नौकरीमें कोई विशेषता नहीं है। हमारे संघर्षका महत्त्व यही है कि हम इस बातको समझ लें। आपको चौथाई देनी पड़ी है, हमें उसे वापस लेनेका प्रयत्न करना पड़ेगा; लेकिन यदि वह वापस न भी मिले तो कोई परवाह नहीं। खेड़ाके किसानोंने इस संघर्ष में बहुत कमाया है और बहुत सीखा है। इस सबको प्राप्त करने में आपकी चौथाई गई तो कुछ अधिक नहीं गया। हमारी लड़ाईका उद्देश्य तो प्रतिज्ञाका पालन करना था। चौथाई वापस लेनेकी हर सम्भव कोशिश की जायेगी। यदि हम विनय और सत्यका पालन करेंगे तो सरकारसे चौथाई वापस देने की अपील कर सकेंगे। चौथाई देनेके बावजूद लोग लगान नहीं देते,
- ↑ प्रतीत होता है, गांधीजीने कलक्टरको लिखा कि यदि मामलतदार द्वारा जारी किये गये आदेशके जैसा ही आदेश प्रकाशित कर सारे जिलेमें लागू कर दिया जाये तथा चौथाई एवं दूसरे जुरमाने वापस के लिये जायें तो संघर्ष बन्द हो जायेगा। कलक्टर द्वारा गांधीजीके सुझावके अनुसार कार्य करनेपर सत्याग्रह समाप्त कर दिया गया।