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सन्देश: खेड़ाके लोगोंको

इससे लोगोंकी प्रतिष्ठा बढ़ती है और सत्यकी प्रतिष्ठा भी। सरकारने जमीनें जब्त करनेका विचार बदल दिया जान पड़ता है। यदि जमीनें जब्त की जातीं तो सरकारकी बहुत बदनामी होती और बात बिगड़ती। जहाँ किसान इतनी शक्ति दिखा रहे हों वहाँ सरकार जमीनें जब्त करती है तो उसका बल घटता है। स्पष्ट अन्यायसे बल घटता है।

[गुजरातीसे]
प्रजाबन्धु, ९-६-१९१८
 

२९०. सन्देश: खेड़ाके लोगोंको[१]

सत्याग्रह शिविर
नडियाद
जून ६ [१९१८]

खेड़ा जिलेके भाइयो और बहनो,

खेड़ा जिलेकी जनताने तारीख २२ मार्चको जो लड़ाई शुरू की थी, वह खत्म हो गई है। उस तारीखको लोगोंने निम्नलिखित प्रतिज्ञा ली[२] थी:

इस प्रतिज्ञाका तात्पर्य यह है कि अगर सरकार गरीबोंका लगान मुलतवी रखे, तो समर्थ आसामी लगान जमा करा देंगे। उत्तरसंडा, नडियादके मामलतदारने तारीख ३ जूनको ऐसा हुक्म जारी किया। इसपर उत्तरसंडाके लोगोंमें जो समर्थ हैं उन्हें लगान जमा कर देनेकी सलाह दे दी गई है, और वहाँ लगान जमा कराना शुरू हो गया है।

उत्तरसंडामें इस प्रकारका हुक्म जारी होनेके बाद, कलक्टर साहबको पत्र[३] लिखकर प्रार्थना की गई कि अगर उत्तरसंडा जैसा ही हुक्म सब जगह जारी हो जाये, तो लड़ाईका अन्त हो जाये और परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदयको १० तारीखको―यानी जिस दिन युद्ध-परिषद्को बैठक होगी―सूचित किया जा सके कि खेड़ा जिलेका घरेलू झगड़ा निपट गया है। कलक्टर महोदयने इस आशयका उत्तर दिया है कि उत्तरसंडामें जारी किया गया हुक्म सारे जिलेपर लागू होता है। इस प्रकार लोगोंकी प्रार्थना अन्ततः स्वीकार हो गई है। ‘चौथाई’ सम्बन्धी सरकारी आज्ञाके बारेमें कलक्टरने बताया है कि जो लोग स्वेच्छासे अदायगी कर देंगे, उनके खिलाफ यह आज्ञा लागू नहीं की जायेगी। इस रियायतके लिए हम कलक्टर महोदयके प्रति आभार प्रकट करते हैं।

हमें अफसोसके साथ कहना पड़ता है कि लड़ाईका अन्त तो हो गया, परन्तु बहुत शोभनीय ढंगसे नहीं। उसमें जो खूबी होनी चाहिए, वह नहीं

  1. यह ज्ञापन गुजराती भाषामें गांधीजी और सरदार वल्लभभाई पटेलके हस्ताक्षरोंसे जारी किया गया था, और अंग्रेजीमें इसे ‘यंग इंडिया’ में “ऐन एण्ड विदाउट ग्रेस” [संघर्षकी शोभाविहीन समाप्ति] शीर्षकसे प्रकाशित किया गया था। वह विभिन्न अंग्रेजी अखवारोंमें भी छपा था।
  2. इसके पाठके लिए देखिए “प्रतिज्ञा”, २२-३-१९१८।
  3. उपलब्ध नहीं है।