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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हृदयसे खुश होकर नहीं दिया गया। ऐसा लगता है कि उक्त हुक्म बहुत बेमनसे जारी किया गया है। कलक्टर महोदय सूचित करते हैं:

२५ अप्रैलको सब मामलतदारोंके नाम यह आदेश जारी कर दिया गया था कि जो लोग अदायगी करनेकी स्थितिमें न हों, उनपर कोई दबाव न डाला जाये। २२ मईको बाकायदा एक परिपत्र भेजकर उनका ध्यान पुनः इन आदेशों की ओर दिलाया गया था। इन आदेशोंपर कारगर ढंगसे अमल हो सके इसलिए मामलतदारोंसे यह भी कहा गया था कि वे लगान अदा न करनेवालोंको दो वर्गों में छाँट लें। एकमें वे लोग रखे जायें जो अदा करनेकी स्थितिमें थे, और दूसरेमें वे लोग जो गरीबीके कारण लगान देनेमें असमर्थ थे।

यदि ऐसी बात थी, तो ये आज्ञायें जनताको क्यों नहीं बताई गईं? यदि २५ अप्रैलको उनकी जानकारी लोगोंको हो गई होती, तो लोग कितने कष्टोंसे बच जाते। विशेष अधिकारियोंको रखकर कुर्कियाँ करनेके लिए जिलेके बहुतसे सरकारी कर्मचारियोंके ऊपर सरकारको जो अनावश्यक खर्च करना पड़ता वह बच जाता। जहाँ-जहाँ लगान बाकी था, वहाँके लोगोंकी जान सांसत में पड़ी रही। कुर्की न हो सके, इसके लिए वे घर छोड़कर बाहर रहे। यहाँतक कि उन्हें ठीकसे भोजन भी नहीं मिला। स्त्रियोंने ऐसे कष्ट सहन किये हैं जिन्हें सहनेका उनके लिए कोई कारण न था, कभी-कभी उद्धत सर्किल इंस्पेक्टरोंके अपमान भी सहन किये हैं। वे असहाय देखती रहीं और दुधारू भैंसें उनकी नजरके सामने खोल ली गई हैं। चौथाईका जुरमाना चुकाया है। उपर्युक्त आज्ञाएँ लोगोंको मालूम हो जातीं, तो लोग इन सब दुःखोंसे बच जाते। अधिकारी लोग जानते थे कि गरीबोंको राहत देने की माँग ही लड़ाईका मुख्य आधार थी। कमिश्नरने तो लोगोंकी इस कठिनाईकी तरफ देखने से ही इनकार कर दिया था। बहुत-से पत्र लिखनेपर भी वे टससे मस नहीं हुए। उनका जवाब था, “असामीवार छूट नहीं दी जा सकती। एसा कानून नहीं है।” अब कलक्टर महोदय कहते हैं कि:

अप्रैल २५ के आदेश, जहाँतक उनका ताल्लुक गरीबीके कारण लगान वास्तवमें अदा न कर सकनेवालोंपर दबाव डालनेसे है, सरकारके उस विषयसे सम्बन्धित सर्वज्ञात स्थायी आदेशोंकी पुनरावृत्ति मात्र थे।

अगर यह बात सच है तब तो लोगोंको आजतक उनके हठके कारण ही दुःख उठाना पड़ा है। दिल्ली जाते समय श्री गांधीने कमिश्नरको पत्र लिखकर राहत देने या उपर्युक्त आशयका हुक्म जारी करने की प्रार्थना की थी ताकि वाइसराय महोदयको समझौतेकी खुशखबरी दी जा सके। कमिश्नरने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया।

“लोगोंको दुःखी देखकर हम विचलित हो गये हैं; हम अपनी भूल अनुभव करते हैं; और लोगोंको सन्तुष्ट करनेके लिए अब हम असामीवार छूट देनेको तैयार हैं।” अधिकारी लोग उदात्त मनसे ये सारी बातें कहकर जनताका मन जीत सकते थे, किन्तु उन्होंने (जनताका मन जीतनेका) यह तरीका अपनाने से इनकार कर दिया। और अब भी जो राहत दी गई है, वह मजबूरन और अनमने भावसे बिना अपनी भूल स्वीकार