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सन्देश: खेड़ाके लोगोंको

किये हुए दी गई है। यही नहीं, यह दावा भी किया जाता है कि जो राहत दी गई है, वह पहले भी दी जाती रही है। इसीलिए हम कहते हैं कि इस समझौते में कोई शोभा नहीं है।[१]

अपनी हठधर्मिता, अपनी इस भ्रमपूर्ण धारणा कि उन्हें अपनी गलती स्वीकार नहीं करनी चाहिए, और इस बातका आग्रह कि उनके बारेमें यह न कहा जा सके कि वे किसी जन-आन्दोलनके सामने झुक गये, इन कारणोंसे ही सरकारी अधिकारी लोकप्रिय नहीं हो सके हैं। यह आलोचना करते हुए हमें दुःख होता है। परन्तु हमें लगा कि उनके मित्रके रूपमें उनकी इतनी आलोचना तो हमें करनी ही चाहिए।

अधिकारी-वर्गका ऐसा असन्तोषजनक व्यवहार होते हुए भी हमारी प्रार्थना स्वीकार हो गई है और जो राहत दी गई है उसे साभार स्वीकार करना हमारा फर्ज है। अब केवल आठ फी सदी लगानका भुगतान होना बाकी है। अबतक लगान अदा न करनेमें ही हमारा स्वाभिमान था। अब स्थितिके बदल जानेपर सत्याग्रहियोंके लिए लगान चुकानेमें स्वाभिमान है। जो समर्थ हैं, उन्हें सरकारको जरा भी तकलीफ दिये बिना लगान तुरन्त जमा करके बता देना है कि जहाँ अन्तरात्माके आदेश और मानवीय कानूनके बीच विरोध नहीं है, वहाँ सत्याग्रही कानूनका आदर करनेमें किसीसे पीछे नहीं हैं। सत्याग्रही कभी-कभी कानून और सत्ताकी क्षणिक अवज्ञा करता प्रतीत होता है किन्तु इसमें उसका उद्देश्य अन्तमें यही सिद्ध करनेका होता है कि दोनोंके प्रति उसके मनमें सच्चा मान है।

लगान अदा करनेमें जो समर्थ हैं उनकी सूची तैयार करते समय खूब पक्की जाँच कर लेनी चाहिए ताकि इसपर कोई आपत्ति न उठा सके। जिनकी असमर्थताके बारेमें जरा भी शंका हो, उनका फर्ज है कि वे लगान अदा कर दें। असमर्थ कौन है, इसका अन्तिम निर्णय तो अधिकारी-वर्ग ही करेगा। फिर भी हम यह मानते हैं कि वह जनताके निर्णयका पूरा आदर करेगा।

खेड़ाके लोगोंने अपनी बहादुरीसे सारे हिन्दुस्तानका ध्यान अपनी ओर खींचा है। सत्य, निर्भयता, एकता, दृढ़ता और आत्मत्यागका पालन करनेका फल उन्होंने पिछले छ:महीनोंमें चखा है। हमें आशा है कि लोग इन महान् गुणोंका अपने में और अधिक विकास करेंगे, प्रगतिके पथपर आगे बढ़ेंगे और मातृ-भूमिका नाम अधिक उज्ज्वल करेंगे। हमारा दृढ़ विश्वास है कि यह लड़ाई छेड़कर खेड़ा जिलेकी जनताने अपनी स्वराज्यकी और साम्राज्य की सच्ची सेवा की है।

ईश्वर आप सबका कल्याण करे।

हम हैं

जनताके चिरसेवक,

मोहनदास करमचन्द गांधी
वल्लभभाई झवेरभाई पटेल

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १२-६-१९१८
  1. यह अनुच्छेद केवल अंग्रेजी पाठमें मिलता है। गुजराती पाठमें यह नहीं है।
१४-२६