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२९१. भाषण: नडियादमें[१]

जून ८, १९१८

जिला मजिस्ट्रेटके रूपमें काम करनेवाले नडियादके कलक्टरके न्यायालयमें श्री मोहनलाल पंडया तथा नवागाँवके पाँच अन्य व्यक्तियोंपर ८ जून, १९१८ को खेतसे[२] प्याज चुरानेका अभियोग लगाया गया। अभियुक्तोंने दृढ़तापूर्वक कहा, वे हृदयसे यही मानते हैं कि उन्होंने कोई गैरकानूनी कार्य नहीं किया है।

गांधीजीने भी अपनी गवाहीमें कहा कि उक्त कार्य के लिए एकमात्र उत्तरदायी मैं हूँ, और मैंने ही अभियुक्तोंको प्याज निकालनेकी सलाह दी थी। यदि प्याज निकालना अपराध है तो न्यायालयका कर्त्तव्य है कि दण्ड मुझे दिया जाये। मामलेके समाप्त होनेपर[३] गांधीजीने न्यायालयकी चहारदीवारीके बाहर एक विशाल सार्वजनिक सभामें भाषण दिया। [उन्होंने कहा:]

इस समय मेरे हृदय में दो भावनाएँ उठ रही हैं: उनमें से एक तो मुझे खुशीसे भरती है और दूसरी दुःखसे। मैं खुश इसलिए हूँ कि खेड़ाके लोग सच्चे सत्याग्रही हैं और उन्हें जेल जानेका सुअवसर मिला है। मेरा यह सन्देह, कि खेड़ाके किसान जेल जानेके लिए तैयार होंगे कि नहीं, दूर हो गया है। मुझे दुःख इसलिए है कि यद्यपि ब्रिटिश अधिकारी आम तौरपर भले होते हैं, फिर भी उनमें से कुछ ऐसे हैं, जिनमें उदारता और दूरदर्शिताकी कमी है। कलक्टर जेलकी सजा देकर अगर ऐसा सोचते हैं कि वे हमें किसी ऐसी जगह भेज रहे हैं जहाँ जाना अपमानजनक है और जहाँ भयानक कष्ट उठाने पड़ते हैं, तो वे भले वैसा सोचें किन्तु हमारे लिए जेल वैसी कोई जगह नहीं है। सच कहें तो लोगोंने वहाँ जो सीखा वह सचमुच प्रशंसनीय है। जबतक हम जेलके कष्टोंको सहना नहीं सीखते तथा जेल-यात्राके वास्तविक अर्थ और पाठकी ओर ध्यान नहीं देते तबतक सत्याग्रहका असली अर्थ हमारी समझमें नहीं आता। सबके लिए यह समझनेका एक बहुत ही उपयुक्त अवसर प्राप्त हुआ है। हमें इसका दुःख होना चाहिए कि हम उन बन्धुओंके समान सौभाग्यशाली नहीं हैं जो जेल गये हैं। मैंने जेल जानेकी पूरी कोशिश की। मैंने कहा कि प्रारम्भसे लेकर अन्ततक एकमात्र उत्तरदायित्व मेरा है।

 
  1. भाषणकी ‘खेड़ा सत्याग्रह’ में दो गई गुजराती रिपोर्ट के आधार पर इसे संशोधित कर लिया गया है।
  2. सरकारी आदेशके द्वार खेतको जब्त कर लिया गया था, किन्तु गांधीजीने कलक्टरको बताया कि जब्त करनेके नोटिसमें खेतकी सर्वेक्षण संख्या नहीं दी गई है, इसलिए उसे जब्त किया गया नहीं समझा जायेगा। बरसात तुरन्त आनेवाली थी इसलिए उन्होंने उन्हें खेतसे प्याज एकत्र करनेकी सलाह दी। इस घटनाका आत्मकथाके अध्याय २४ में विस्तारसे वर्णन है।
  3. दो अभियुक्तोंको १० दिनकी तथा शेषको बीस-बीस दिनकी कैदकी सजा दी गई।