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२९५. पत्र: जे० क्रिररको

बम्बई
जून ११, १९१८

प्रिय श्री क्रिरर,

मेरे सबेरेके पत्रका स्पष्ट और पूर्ण उत्तर[१] देनेके लिए कृपया मेरी ओरसे परम-श्रेष्ठको धन्यवाद दे दें। मैं भारत सेवक समाज [सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी ] के समारोहमें शामिल होनेके लिए इसी समय पूना जा रहा हूँ। मैं बृहस्पतिवारको लौटूँगा और परमश्रेष्ठकी इस कृपाका कि यदि मैं चाहूँ तो वे मुझे मिलनेका अवसर प्रदान करेंगे, उपयोग करना चाहूँगा। यदि उन्हें उस दिन सुविधा हो तो क्या मुझे समाजकी मारफत पूना सिटीके पतेपर तार द्वारा यह सूचित करनेकी कृपा करेंगे कि मैं (दोपहर के बाद) किस समय उनसे मुलाकात करने आऊँ। इस बीच में परमश्रेष्ठको विश्वास दिला दूँ कि मैंने जो पत्र लिखा था उसका इरादा यह बताना नहीं था कि मेरे विचारोंमें या मेरे प्रस्तावमें परिवर्तन तो दूर, उसकी सम्भावना भी हो सकती है। मैं हर क्षण उस प्रस्तावको कार्यरूप देने की तैयारी कर रहा हूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

इंडिया ऑफिस ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स: ३४१२/१८


सम्राटके प्रति राजभक्ति प्रकट करनेवाले प्रस्तावपर कलहपूर्ण राजनीतिक बहसकी अनुमति नहीं दे सकते। साम्राज्यका कोई राजभक्त नागरिक इस संकट-कालमें अपनी सेवाएँ अर्पित करनेके लिए शर्त लगाये तो यह बात उन्हें और भी नापसन्द है। श्री तिलक और उनके कुछ साथियोंने ऐसी शर्तें रखीं जिनके सम्बन्ध में वे भी जानते हैं और हर आदमी जानता है कि उन्हें परमश्रेष्ठकी सरकार पूरा नहीं कर सकती। इस तरहकी शर्तोंके साथ सहयोग करनेका प्रस्ताव असहयोग करनेसे केवल इस बातमें भिन्न है कि उसमें स्पष्टवादित। नहीं है। परमश्रष्ठको पूरा विश्वास है कि यदि आप पुनः विचार करेंगे तो आप स्वीकार करेंगे कि उनके ये ही विचार हो सकते हैं और उन्हें निश्चित रूपसे इन्हींपर अमल करना होगा। और स्वयं आपका आचरण इन विचारोंपर परमश्रेष्ठका विश्वास और भी दृढ़ कर देता है: आपने स्वयं वाइसरायको बिना किसी शर्तके अपनी सेवाएँ पेश कीं और यही कारण है कि उस प्रस्तावसे वे इतने प्रसन्न हुए और उसका इतना स्वागत किया। उन्हें पूरा विश्वास है कि यदि कोई नागरिक अपने दायित्वोंके बारेमें कोई भिन्न विचार अथवा परम की सम्मतिमें निम्नतर विचार रखता हो तो उससे प्रेरित होकर आप अपने उस वचनके पालनमें किसी तरह आगा-पीछा नहीं करेंगे, जिसको प्राप्त करके परमश्रेष्ठको इतनी प्रसन्नता हुई थी। मुझे इतना और लिख देनेको कहा गया है कि यदि इस सम्बन्धमें आप परम श्रेष्ठसे फिर मिलना चाहें, तो आपका स्वागत है।

  1. देखिए पिछले शीर्षककी पाद-टिप्पणी ४।