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भाषण : द्वितीय गुजरात शिक्षा सम्मेलनमें

शकुन मानता हूँ। जब-कभी मुझे भड़ौंचका स्मरण होगा तब मैं आने-जानेवालोंसे यह बात पूछूँगा कि जिन व्यापारियोंने मुझे अभिनन्दन-पत्र दिया था, उनमें सच्ची आस्था और स्वदेश-प्रेम है या नहीं। यदि मुझे निराशाजनक उत्तर मिलेगा तो मैं समझूँगा कि भारतमें अभिनन्दन-पत्र देनेका जो चलन हो गया है मुझे भी उसीके प्रवाहमें पड़कर मानपत्र दे दिया गया था।[१]

[गुजरातीसे]
गुजराती, २८-१०-१९१७

७. भाषण : द्वितीय गुजरात शिक्षा सम्मेलनमें[२]

भड़ौंच
अक्तूबर २०, १९१७

भाषण आरम्भ करनेसे पूर्व गांधीजीने उपस्थित जनसमुदायसे क्षमा-याचना करते हुए कहा:

चूंकि देर हो गई है, इसलिए अपना भाषण पढूँगा तो सभा निर्धारित समयसे अधिक देर तक चलेगी। फिर भी मैं अपना भाषण पढ़ रहा हूँ; क्योंकि यहाँ उपस्थित मेरे मित्रोंका यही आग्रह है। भाषण तैयार करते हुए जो-कुछ कहना था उसे संक्षेपमें कहनेकी अधिकतम सावधानी मैंने रखी है; तिसपर भी, जितना मैं चाहता था वह उससे कुछ लम्बा हो गया है। मुझे उम्मीद है कि यदि भाषण पढ़नेमें मुझे निश्चित समयसे कुछ अधिक समय लग जाये तो आप क्षमा करेंगे।

इसके बाद गांधीजीने अपने छपे हुए भाषणको पढ़ा:

भाइयो और बहनो,

आपने मुझे इस सम्मेलनका अध्यक्ष बनाया है, इसके लिए मैं आप सबका कृतज्ञ हूँ। मैं जानता हूँ कि इस पदको सुशोभित करने लायक विद्वत्ता मुझमें नहीं है। मुझे इस बातका भी ध्यान है कि मैं देशसेवाके दूसरे क्षेत्रोंमें जो हिस्सा लेता हूँ, मैं उससे इस पदके योग्य नहीं हो जाता। मैं इसके योग्य एक ही कारणसे हो सकता हूँ, और वह है गुजराती भाषाके प्रति मेरा प्रेम। मेरी आत्मा कहती है कि गुजरातीके प्रेमकी होड़में पहले दरजेसे कममें मुझे सन्तोष नहीं हो सकता, और उसी मान्यताके कारण मैंने जिम्मेदारीका यह पद स्वीकार किया है। मुझे आशा है कि जिस उदार वृत्तिसे आपने मुझे यह पद दिया है, उसी उदार वृत्तिसे आप मेरे दोषोंको दरगुजर करेंगे, और इस काममें, जो जितना आपका है उतना ही मेरा भी है, पूरी मदद देंगे।

 
  1. इस भाषणका मिलान स्पीचेज़ ऐंड राइटिंग्ज़ ऑफ महात्मा गांधीमें दिये गये पाठसे कर लिया गया है।
  2. गांधीजी सम्मेलनके अध्यक्ष थे।