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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री तिलक बोलने खड़े हुए। वे मुश्किलसे तीन वाक्य, जिनमें से दोमें तो राजभक्तिका ही इजहार था, बोल पाये होंगे कि उन्हें यह कहकर रोक दिया गया कि वे राजभक्ति-सम्बन्धी प्रस्तावपर अपने राजनैतिक विचार व्यक्त कर रहे हैं। श्री तिलकने इसका विरोध करते हुए कहा कि राजभक्तिके प्रस्तावमें कुछ जोड़ा गया है और उसके सम्बन्धमें आलोचना करनेका उन्हें अधिकार है; किन्तु उसका कोई फल न निकला। इसके बाद श्री केलकर खड़े हुए। उन्हें भी बोलनेसे रोक दिया गया। इस सबका परिणाम यह हुआ कि तुरन्त कुछ लोग श्री तिलकके नेतृत्वमें टाउन हॉलसे बाहर निकल आये।[१] मेरी नम्र सम्मतिमें परमश्रेष्ठने यह आदेश देनेमें सख्त भूल की। इतना ही नहीं, वे जिस उद्देश्यको मजबूत बनाने आये थे उन्होंने उसीका अहित किया। उन्होंने अकारण ही श्री तिलक और श्री केलकरका और उनके रूपमें देशकी एक शक्तिशाली संस्थाका अपमान किया। श्री तिलक और उनके अनुयायियोंकी अवहेलना या अवमानना करना सम्भव ही नहीं है। श्री तिलक जनताके आराध्य हैं। हजारों लोगोंपर उनका इतना बड़ा प्रभाव है जितना किसी अन्य नेताका नहीं। उनके लेखे श्री तिलकका आदेश कानून है। मेरा उनसे बहुत मतभेद है; परन्तु यदि मैं इस तथ्यसे इनकार करूँ कि उनके उत्कट देश-प्रेम, उनके महान् त्याग और जनताकी माँगके प्रबल समर्थनकी बदौलत इस देशकी राजनीतिमें उनकी स्थिति अनन्यतम है तो मैं आत्मप्रवंचनाका दोषी होऊँगा। उनका और उनके माध्यमसे लीगोंका जो अपमान किया गया है वह समस्त राष्ट्रका अपमान है। इसलिए, हममें राजनीतिक मतभेद हो चाहे न हो, हम सबका, जिनको ऐसा प्रतीत हुआ है कि श्री तिलक और श्री केलकरसे लॉर्ड विलिंग्डनने अनुचित व्यवहार किया है, यह कर्त्तव्य है कि हम उसका विरोध करें। मैं यह बात स्वीकार कर लेनेको तैयार हूँ कि यदि श्री तिलक उक्त प्रस्तावके समर्थनमें बोलने के लिए खड़े होते तो बेहतर होता। वैसे, मेरी व्यक्तिगत और विशिष्ट सम्मति―जिसमें शायद अन्य कोई मेरे साथ नहीं है―यह है कि यदि वे अपने गौरवके अनुकूल मौन रहते तो अधिक अच्छा होता। परन्तु मेरे खयालसे, उन्हें राजभक्ति-सम्बन्धी प्रस्तावपर बोलने और उसकी आलोचना करनेका अधिकार था। मैं इस रायसे बिलकुल सहमत नहीं हूँ कि राजभक्ति -सम्बन्धी प्रस्तावमें व्यक्तिगत भावोंको व्यक्त करनेकी गुंजाइश नहीं रहती। जिस राजभक्तिको आलोचनासे बचानेके लिए दीवार बनानेकी आवश्यकता हो वह राजभक्ति उथली होती है। मेरी रायमें सम्राट्से मेरा यह कहना मेरी राजभक्तिके बिलकुल अनुकूल है कि उनके नामसे ऐसे काम किये जा रहे हैं जो नहीं किये जाने चाहिये। इस चेतावनी के कारण मेरी राजभक्तिकी घोषणा और भी वास्तविक लगेगी। मेरा खयाल है कि होमरूल लीगोंने अनेक सेवाएँ की हैं और उनमें से विशेष उल्लेखनीय यह है कि उन्होंने लोगोंमें अपने मनके भाव व्यक्त करनेका साहस पैदा कर दिया है। और मेरे मनमें इस बात के बारेमें जरा भी सन्देह नहीं है कि यदि ये लीगें अपने कर्त्तव्यका पालन पूर्णरूपेण करती चली जायें तो भारतकी राजभक्ति बिलकुल असन्दिग्ध हो जायेगी। क्योंकि होमरूल लीगके

  1. तिलकके साथ सर्वश्री गांधी, जिन्ना, बी० जी० हॉर्निमैन (‘बॉम्बे कॉनिकल’ के तत्कालीन सम्पादक), एन० सी० केलकर और आर० पी० करंदीकर भी बाहर आ गये थे।