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भाषण: बम्बईकी सभामें

सहयोग मैंने अपने कामके लिए सदा ही माँगा है और जो मुझे उन्मुक्त हृदयसे दिया गया है। मैंने लीगके अनेक ऐसे सदस्य देखे हैं जो मातृभूमिकी खातिर हर प्रकारका त्याग कर सकते हैं। मेरे देखने में आया है कि उनमें से कुछ तो बहुत ही योग्य नवयुवक हैं। क्योंकि यह सराहना करते समय मेरे दिमागमें आन्दोलनके अग्रगण्य नेताओंका खयाल नहीं आ रहा है, मैं तो साधारण कोटिके कार्यकर्त्ताओंकी ही, जिनके साथ काम करनेका मुझे शुभ अवसर प्राप्त हुआ है, बात कर रहा हूँ। मैं इस बातकी तसदीक करना चाहता हूँ कि वे ब्रिटेनके विधानके प्रति वफादार हैं और ब्रिटेनके साथ सम्बन्ध बनाये रखना चाहते। हाँ, मैं इस बातको भी प्रमाणित करता हूँ कि वे अंग्रेजोंके पंजेसे अपने देशको स्वतन्त्र करने के लिए अधीर हो रहे हैं। नौजवानोंमें जो गुण और दोष हुआ करते हैं वे सब उनमें प्रचुर रूपमें मौजूद हैं। वे जिन शब्दोंको काममें लाते हैं वे कभी-कभी तीखे और उग्र भी होते हैं और विधान सभाओंमें बरते जानेवाले शब्दोंकी तरह संतुलित और सौम्य नहीं होते। उनसे उनका तीव्र उत्साह ही प्रकट होता है। हम सयाने और अनुभवी लोग उनके कुछ कामोंपर कभी-कभी आश्चर्य भी करने लग जाते हैं। परन्तु उनके हृदय सबल और शुद्ध हैं। वे कुछ हदतक वातावरणमें से ढोंग और कृत्रिमताको मिटाने में सफल हुए हैं। उनके सत्य-कथनसे कभी-कभी हमारे हृदयोंको चोट भी पहुँचती है, परन्तु मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि यद्यपि जिस समय ये लीगें स्थापित की गई थीं उस समय मेरे मनमें उनके प्रति सन्देहके भाव उत्पन्न हुए थे और मैं उनकी उपयोगिताके बारेमें भी शंकायुक्त था, तथापि उन्होंने जो काम कर दिखाया है उसे ध्यानसे देखनेपर मुझे विश्वास हो गया है कि इन लोगोंने एक ऐसी कमी पूरी की है जो बहुत दिनोंसे अनुभव की जा रही थी। उन्होंने लोगोंमें प्रकाश फैलाया है, उनमें आशा और साहस भरा है और अगर अधिकारी उनके इरादोंको गलत न समझ लेते तो मुझे यकीन है कि ये जनशक्तिके इस अतुल भण्डारसे लाभ उठा सके होते। उनसे यह कहने की जरूरत नहीं कि लीगोंके सदस्योंको अपने उत्तरदायित्वका भान है और वे उसे निभाते हैं। इन शुद्ध मनोवृत्तिके नौजवानोंसे, जिन्होंने नौकरशाही शासन-तन्त्रमें बड़ी-बड़ी परेशानियोंका सामना किया है इसकी आशा करना व्यर्थ था।

अधिकारी अधिक अनुभवी हैं, इसलिए उनका यह कर्त्तव्य था कि वे अधिक बुद्धिमत्तासे काम लेते और होमरूल लीगके सदस्योंको अपना बना लेते। होमरूल लीगियोंने अब गलती समझ ली है, वह चाहे जिस प्रकारकी हो, इसलिए उन्हें चाहिए कि वे उसे ठीक कर लें। उन्हें चाहिए कि वे नौकरशाहों परसे भी अपना विश्वास न हटायें। विश्वासका अभाव दुर्बलताका सूचक है। नौकरशाही खराब है, उसका अन्त निश्चित है। परन्तु उसमें काम करनेवाले सब अधिकारी खराब नहीं हैं। उनके सुधारने में हमारी विजय है। जिस प्रकार उनके सामने जाकर गिड़गिड़ाना, ‘जो हुक्म’ कहना और उनके चरणों में गिरना गलत है उसी प्रकार उन्हें लज्जित या अपमानित करना भी गलत है। हमें नौकरशाहीके हथकंडोंका मुकाबला अत्यन्त ईमानदारी और निडरतासे करना चाहिए। हम बदीके बदले नेकी करें―यह बात देवताओंके लिए नहीं, बल्कि मनुष्योंके लिए कही गयी थी। सबसे अधिक मर्दानगीका रास्ता तो यह है कि हम ईमानदारीकी सीधी और तंग पगडंडीसे तिलभर भी इधर-उधर न हों। यदि होमरूल लीगके सदस्योंमें मर्दा-