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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

राष्ट्रीय कार्यको सम्पादित करने में कदम-कदमपर जनताके प्रति अविश्वास दिखा रही है। दूसरा कारण यह है कि सम्बन्धित विभागोंके अधिकारियोंको युद्धके संचालनमें लोगोंका सहयोग समानताकी भावनासे प्राप्त नहीं हो सका है। और तीसरे, शस्त्र कानूनमें ऐसा आवश्यक संशोधन करनेमें अत्यधिक विलम्ब हो रहा है―जिससे अगर आम लोग, चाहें तो, हथियार ले सकें और रख सकें। चौथा कारण यह है कि अभी तक भारतीय फौजमें कमीशन प्राप्त अफसरोंकी जगहोंपर भारतीयोंको लेने की अनुमति नहीं है और प्रजाति-भेद तथा पक्षपात पूर्ववत् बने हुए हैं। पाँचवाँ कारण यह है कि दिल्लीमें साम्राज्यीय युद्ध-सम्मेलनके प्रस्तावों में भारतीयों को मौजूदा फौजी कॉलेजों में दाखिल करनेकी तथा उनके लिए नये कॉलेज अविलम्ब खोलनेकी जो सिफारिश की थी उसको कार्यान्वित नहीं किया गया है। इस सभाकी रायमें स्थिति यह है कि यद्यपि प्रधान मन्त्री महोदयने फौजमें भरती होनेके सम्बन्धमें जो आमन्त्रण प्रकाशित किया है उसके उत्तरमें प्रत्येक राजभक्त भारतीय सच्चे हृदय से भरती होनेको तैयार बैठा है, तथापि भारतीय नेताओंकी समझमें भरतीके सम्बन्ध में आम लोगोंका पूरा और दिली सहयोग पाना तबतक कठिन है, जबतक भारत सरकार उपर्युक्त दोषोंको दूर नहीं करती और इस प्रकार अपनी वर्तमान नीतिको नहीं बदलती, उनकी यह धारणा बदल नहीं सकती।

मो० क० गांधी
सभाध्यक्ष

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २-१०-१९१८

३००. भाषण: नडियादमें[१]

जून १७, १९१८

गांधीजीने अपने भाषणमें यह कहा कि किसानोंका सबसे पहला और महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य सरकारकी मदद करना है। जर्मनोंको पराजित करनेके लिए पूरी सहायता दी जानी चाहिए। अंग्रेज जर्मनोंसे अच्छे हैं। हम अंग्रेजोंके निकट सम्पर्कमें आये हैं और दोनों एक-दूसरेको अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए अंग्रेजोंकी सहायता करना हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य है। कुछ लोगोंका कहना है कि हमें उनकी सहायता उसी सूरतमें करनी चाहिए जब वे

  1. खेड़ा जिलेके जिलाधीशने पद विवरण सरकारके पास भेजते हुए लिखा था―“फौजी भरतीके बारेमें १७ जूनको नडियादमें श्री गांधीने अपने समीपवर्ती अनुयायियोंकी एक छोटी-सी सभा की थी।... इसमें लगभग ५० आदमी मौजूद थे।”