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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

सम्मेलन अभी एक बरसका शिशु है। कहावत है कि पूतके पाँव पालने में दिखाई दे जाते हैं। इस बालकके लक्षण भी अच्छे दिखाई देते हैं। पिछले सालके कामकी रिपोर्ट मैंने देखी है। वह किसी भी संस्थाके लिए शोभनीय हो सकती है। मन्त्री महोदय समयपर सम्मेलनका यह मूल्यवान विवरण छपवानेमें सफल हुए, इसके लिए वे हमारी बधाईके पात्र हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसे मन्त्री मिले हैं। जिन्होंने यह रिपोर्ट न पढ़ी हो, उन्हें मैं इसे पढ़ने और इसपर मनन करनेकी सलाह देता हूँ।

पिछले साल आदरणीय रणजीतराम बावाभाईकी[१] मृत्यु हो गई; यह हमारी बड़ी भारी हानि हुई। उनके जैसा पढ़ा-लिखा आदमी भरी जवानीमें चल बसा, यह शोचनीय बात है और इसपर विचार करनेकी आवश्यकता भी है। मैं भगवान् से उनकी आत्माको सद्गति देनेकी प्रार्थना करता हूँ और चाहता हूँ कि उनके कुटुम्बको इस बातसे सान्त्वना मिले कि हम सब उनके दुःखमें भागीदार हैं।

जिस संस्थाने[२] इस सम्मेलनका आयोजन किया है, उसने अपने सामने तीन उद्देश्य रखे हैं:

(१) शिक्षाके प्रश्नके बारेमें लोकमत तैयार करना और उसे अभिव्यक्ति देना।

(२) गुजरातमें शिक्षाके प्रश्नोंके विषयमें निरन्तर आन्दोलन करना।

(३) गुजरातमें शिक्षाके प्रसारके लिए ठोस कार्य करना।

इन तीन उद्देश्योंके बारेमें अपनी बुद्धिके अनुसार मैंने जो सोचा-विचारा है उसे यहाँ पेश करनेकी कोशिश करूँगा।

यह बात सबको अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि इस दिशामें हमारा पहला काम है, विचारपूर्वक शिक्षाका माध्यम निश्चित करना। इसके बिना और सब कोशिशें लगभग बेकार साबित हो सकती हैं। शिक्षाके माध्यमका विचार किये बिना शिक्षा देनेका परिणाम नींवके बिना इमारत खड़ी करनेकी कोशिश-जैसी बात होगी।

इस बारेमें दो रायें पाई जाती हैं। एक पक्ष कहता है कि शिक्षा मातृ-भाषा (गुजराती) के जरिये दी जानी चाहिए। और दूसरा पक्ष कहता है कि वह अंग्रेजीके माध्यमसे दी जानी चाहिए। दोनों पक्षोंके हेतु पवित्र हैं। दोनों देशका भला चाहते हैं। लेकिन पवित्र हेतु ही कामकी सिद्धिके लिए काफी नहीं है। देखा गया है कि लोग पवित्र हेतु रखते हुए भी कई बार अपवित्र गड्ढोंमें जा गिरे हैं। इसलिए हमें दोनों मतोंके गुण-दोषोंकी जाँच करके, सम्भव हो तो एकमत होकर, इस बड़े प्रश्नको हल करना चाहिए। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह प्रश्न बहुत बड़ा है। इसलिए उसके बारेमें जितना विचार किया जाये उतना ही थोड़ा है।

वैसे तो यह प्रश्न सारे भारतका है; किन्तु हरएक क्षेत्र अथवा प्रान्त इसपर अपनी हदतक स्वतन्त्र रूपसे विचार कर सकता है। फिर भी ऐसा नहीं है कि जबतक भारतके सारे भाग एकमत न हो जाये, तबतक अकेला गुजरात आगे कदम बढ़ा ही नहीं सकता।

 
  1. रणजीतराम बावाभाई मेहता (१८८२-१९१६); उनके नामसे एक स्वर्ण पदक गुजरातमें प्रतिवर्ष साहित्य और कलाओंके क्षेत्रमें की गई विशिष्ट सेवाओंके लिए दिया जाता है।
  2. भड़ौंच केलवणी मण्डल; भड़ौंचकी एक शिक्षा-संस्था।