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भाषण: नडियादमें

मिला है। सत्याग्रहमें वैर-भाबके लिए स्थान ही नहीं है। हमारे संघर्षमें यह भाव न था, इस बातका मुझे विश्वास है। आइए, अब हम इस बातपर विचार करें कि सरकारसे हर परिस्थितिम सम्बन्ध बनाये रखना हमारे लिए वांछनीय है अथवा नहीं। मैंने अपने इस संघर्षके दौरान तथा अन्य अवसरोंपर सरकारके दोषोंका अच्छी तरहसे निरीक्षण किया है, और सरकारको उनसे अवगत भी कराया है; लेकिन भारतमें मुझे सरकारके गुण बतानेका अवसर अवश्य नहीं मिला। इसके साथ निकट सम्पर्क में आनेपर मैंने इतना तो सीखा है कि हमारा साम्राज्यमें परतन्त्रताकी स्थितिमें बने रहना वांछनीय नहीं है। अंग्रेजोंकी यह विशेषता है कि वे परतन्त्र जातियोंके साथ भारवाही पशुओंका-सा व्यवहार करते हैं। लाभ तभी है जब हम उनके साथ उनके मित्र अथवा साझेदारके रूपमें रह सकें। ये लोग साझेदारोंका मान बनाये रखनेमें और उनके प्रति वफादार रहने में पक्के रहते हैं। अंग्रेज लोगोंमें कुछ सद्गुण हैं। वे न्यायप्रिय हैं और उन्होंने पीड़ितोंकी रक्षा भी की है। उन्हें वैयक्तिक स्वतन्त्रता बहुत प्रिय है। तब फिर हमें ऐसे लोगोंसे बिलकुल ही सम्बन्ध क्यों तोड़ देना चाहिए। यदि ऐसा करना भी चाहें तो भी संसारमें अपनी सब इच्छाएँ तो कोई पूरी नहीं कर पाता। मित्रोंकी जरूरत सभीको होती है। जापान, अमेरिका और इंग्लैण्डको भी किसी-न-किसीसे मित्रता रखनी ही पड़ती है। सभी देशोंके लोग अपने- अपने स्वभावके अनुकूल लोगोंसे सम्बन्ध रखते हैं। भारतीयोंकी भी यही स्थिति है। हम स्वतन्त्रताकी कामना करते हैं, वह भी इसी रूपमें। इस सम्बन्धमें आस्ट्रेलिया और कैनेडाका उदाहरण हमारे सामने है। हम भी इन्हींके समान दर्जा चाहते हैं। वे सुरक्षाका उपभोग भी करते हैं और स्वयं रक्षा-व्यवस्थामें योग भी देते हैं। हम भी ऐसा ही चाहते हैं। अगर यह स्थिति निश्चित रूपसे प्राप्तव्य हो तो हमें उस दिशामें कदम उठाना चाहिए। यदि आप ऐसा मानते हों कि हमारे लिए अंग्रेजोंसे सम्बन्ध रखना दुःखदायी है, तो मेरी सलाह बेकार होगी। इतना ही नहीं, वह अपमानजनक ही होगी। लेकिन यदि हम अंग्रेजोंके साथ बराबरीके साझेदारके रूपमें रहना चाहते हों तो में अपनी सलाहको अमूल्य मानता हूँ। भारत अपंग है। यदि अंग्रेज हमें छोड़ जायें तो हम एक-दूसरेसे अपना बचाव नहीं कर सकते हैं। उपद्रवी जातियोंसे हम अपनी रक्षा नहीं कर सकते। कोई विदेशी आक्रमणकारी आये तो हम उससे अपनी रक्षा करने लायक नहीं हैं। यदि कोई कहे कि ऐसी भयावह स्थितिके लिए अंग्रेज सरकार उत्तरदायी है तो यह बात सच है। इस जातिमें ऐसी बहुत-सी त्रुटियाँ हैं; लेकिन उसके गुणोंका लाभ उठाकर अपनी उन्नति करना हमारा कर्त्तव्य है।

भारत इतना दुर्दशाग्रस्त है कि वह दूसरोंकी सहायताके बिना आगे नहीं बढ़ सकता। उसकी इस पंगुताको दूर करना चाहिए। हमें देशकी रक्षा करने की सत्ता दी जानी चाहिए ताकि हम अपने स्त्री-पुरुषोंकी हिफाजत कर सकें। हम जबतक अपनी रक्षा करने में समर्थ न हों तबतक स्वराज्यके योग्य नहीं हो सकते। भारतकी रक्षा सदा अंग्रेज करें, यही उसकी पंगुता है। हमें इस पंगुताको दूर करनेका पवित्र कार्य सबसे पहले करना चाहिए।