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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पक्का विश्वास है, इस समय ‘होमरूल लीग’ आन्दोलनका प्रथम और अन्तिम चरण यही होना चाहिए।[१]

[गुजरातीसे]
गुजराती, ७-७-१९१८
 

३०३. सैनिक-भरतीकी अपील

पत्रिका―१[२]

नडियाद
जून २२, १९१८

भाइयो और बहनो,

आपने अभी-अभी सत्याग्रहकी भारी लड़ाई समाप्त की है। उसमें आपकी विजय हुई। इस लड़ाईमें आपने ऐसे शौर्य, चातुरी और अन्य गुणोंका परिचय दिया कि मैं आपको देशके लिए इससे भी ज्यादा महत्त्वके काममें लगनेकी सलाह देने और आग्रह करनेकी हिम्मत करता हूँ।

आपने यह दिखा दिया है कि सरकारका विनयपूर्वक विरोध कैसे किया जा सकता है और विरोध करते हुए भी उसकी सम्मान रक्षा कैसे की जा सकती है एवं कैसे स्वयं प्रतिष्ठा प्राप्त की जा सकती है। अब मैं आपके सम्मुख यह दिखानेका अवसर प्रस्तुत करता हूँ कि ऐसी भारी लड़ाई लड़नेपर भी आपके मनमें सरकारके प्रति तनिक भी कटुता नहीं है।

आप सब स्वराज्यवादी हैं और आपमें से कुछ ‘होमरूल लीग’ के सदस्य हैं। होमरूलका एक अर्थ यह है कि हम साम्राज्यमें रहकर ‘साम्राज्य के हिस्सेदार बनें’। आज हम लोग पराधीन हैं। आज हमें अंग्रेजोंके बराबर हक हासिल नहीं हैं। कैनेडा, दक्षिण आफ्रिका और आस्ट्रेलिया जैसे इंग्लैंडके हिस्सेदार माने जाते हैं, वैसे हिस्सेदार हम नहीं हैं। हमारा देश तो पराधीन माना जाता है। हम अंग्रेजों जैसे ही हक चाहते हैं, दक्षिण आफ्रिका वगैरा उपनिवेशोंके बराबरके बनना चाहते हैं और कामना करते हैं कि ऐसा समय आये जब हम वाइसराय तकका पद ले सकें। ऐसी स्थिति लाने के लिए हममें अपनी रक्षा करने अर्थात् शस्त्र उठाकर लड़ने की शक्ति आनी चाहिए। जबतक हमारी रक्षा केवल अंग्रेजोंपर निर्भर है और जबतक हम सिपाही-वर्गसे डरते हैं, तबतक हम अंग्रेजोंकी बराबरीके कहला ही नहीं सकते। इसलिए हमें हथियार चलाना सीखकर

  1. १९१८ के बॉम्बे सीक्रेट एक्स्ट्रैक्ट्सके एक खरीतेके अनुसार गांधीजीने भाषणके अन्त में कहा: “सभाकी केाई रिपोर्ट समाचारपत्रोंको तबतक भेजनेकी आवश्यकता नहीं है”, जबतक वे रंगरूट प्राप्त करने में सफल नहीं हो जाते।
  2. सम्भव है गांधीजीने उसके पाठका उपयोग अपने किसी भाषणमें भी किया हो। इसकी छपी हुई प्रतियों विस्तृत रूपसे बाँटी गईं और समाचारपत्रों में इसका अंग्रेजी रूपान्तर भी प्रकाशित हुआ था।