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सैनिक-भरतीकी अपील

अपनी रक्षा करनेकी शक्ति प्राप्त करनी चाहिए। ‘हथियार चलाना बहुत जल्दी सीखना हो तो सेनामें भरती होना हमारा कर्त्तव्य है’।

मर्द और नामर्दमें मित्रता नहीं हो सकती। हम नामर्द माने जाते हैं। अगर हम नामदोंमें नहीं जाना चाहते, तो हमें हथियार चलाना सीखना जरूरी है।

यह निश्चय है कि हमें साम्राज्यमें हिस्सेदार बनना है। तब हमें चाहे कितना ही दुःख उठाना पड़े, प्राण भी देने पड़ें, फिर भी हमें साम्राज्यका बचाव करना चाहिए। अगर साम्राज्यका नाश हो जाता है तो उसके साथ हमारी महती आशाएँ भी नष्ट हो जाती हैं।

‘इसलिए स्वराज्य लेनेका सबसे सरल और सबसे सीधा उपाय साम्राज्यके बचावमें भाग लेना है’। हम बहुत रुपया दे सकें, इतनी ताकत हममें नहीं है। फिर जीत रुपये से ही मिल जाये यह सम्भव नहीं है। जीत सैन्यबलसे ही मिलनी सम्भव है। भारत अपार सेना जुटा सकता है। अगर मुख्यतः हमारी सेनासे साम्राज्यकी जीत हो, तो स्पष्ट है कि हम जो भी हक माँगेंगे, ले सकेंगे।

कुछ लोग कहेंगे कि यदि हम अभी इन हकोंको न लेंगे तो बादमें धोखा होगा। किन्तु जिस शक्तिसे हम साम्राज्यका बचाव करेंगे, उसी शक्तिसे हम अपने हक भी ले सकते हैं। साम्राज्यकी निर्बलताके अवसरसे लाभ उठाकर लिए गये हक साम्राज्यके बलवान होनेपर हाथसे निकल जा सकते हैं। हम साम्राज्यको सताकर उसमें हिस्सेदारीका हक नहीं पा सकते। साम्राज्यकी सेवा करनेसे हमें जो हक मिलेंगे, वे उसे तंग करनेसे हरगिज नहीं मिलेंगे। साम्राज्यके संचालकोंका अविश्वास करना अपनी शक्तिका अविश्वास करना है और यह हमारी दुर्बलताका चिह्न है। हमारे हक संचालकोंकी भलाई या कमजोरीपर निर्भर न होकर, बल्कि हमारी योग्यता, हमारी शक्तिपर निर्भर होने चाहिए।

देशी राज्य साम्राज्यकी मदद कर रहे हैं, इसलिए उन्हें इसका बदला मिल रहा है। धनाढ्य लोग सरकारको रुपयेकी मदद दे रहे हैं। उन्हें भी इसका बदला मिल रहा है। दोनों में से कोई भी शर्तोंके साथ मदद नहीं देता। फौजी सिपाही अपने नमक, अपनी आजीविकाके बदले मदद कर रहे हैं। उन्हें आजीविका और उसके सिवा इनाम-इकराम मिल जाते हैं। ये सब हमारे ही अंग हैं, परन्तु ये स्वराज्यवादी नहीं माने जा सकते। इनका ध्येय स्वराज्य नहीं है। ये स्वदेश-प्रेमके कारण मदद नहीं देते। अगर हम वैरभावसे स्वराज्य लेना चाहें तो ऐसा भी हो सकता है कि साम्राज्यके संचालक इन तीनों शक्तियोंका उपयोग हमारे विरुद्ध करें और हमें हरा दें।

अगर हम स्वराज्य लेना चाहते हैं, तो हमारा कर्त्तव्य है कि हम भी साम्राज्यकी मदद करें और हमें उसका बदला अवश्य मिलेगा। हमारी नीयत साफ होगी, तो सरकार भी हमसे साफ नीयतसे बर्ताव करेगी। अगर क्षण-भरके लिए यह मान लें कि सरकारकी नीयत साफ नहीं रहेगी, तो भी हमें अपनी नीयतकी सफाईपर विश्वास रखना चाहिए। यदि हम भलेके साथ ही भलाई करें तो यह वीरता नहीं है, किन्तु यदि हम बुरेके साथ भी भलाई करें तो इसमें वीरता है।