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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सरकार हमें सेनामें कमीशन अर्थात् ऊँचे पद नहीं देती; हथियारोंपर पाबन्दीके कानूनको रद नहीं करती और हमें फौजी तालीम देनेके लिए स्कूल नहीं खोलती, तब हम उसे कैसे मदद दे सकते हैं? ये आपत्तियाँ उचित हैं।

सरकार इस विषयमें सुधार न करके बड़ी भूल कर रही है। अंग्रेज जातिने बहुतसे पुण्य-कार्य किये हैं। उनके लिए भगवान् उसका भला करे। परन्तु अंग्रेज जातिके नाम पर अंग्रेज अधिकारियोंने भारतको निःशस्त्र बनाकर घोर पाप किया है। अधिकारी-वर्ग यदि अब भी नहीं चेतेगा तो अंग्रेज जातिके सारे पुण्य कार्योंको नष्ट कर देगा। ईश्वर न करे, यदि भारतकी कुछ भी हानि हुई, और वह किसी अन्य देशके अधीन हो गया, तो भारतीयोंकी आत्मा अंग्रेजोंको बहुत कोसेगी, अंग्रेजोंको दुनियाके सामने लज्जित होना पड़ेगा और तेतीस करोड़ लोगोंको नामर्द बनाने के कारण बुरा-भला सुनना पड़ेगा। मैं मानता हूँ कि इंग्लैंडके महान् पुरुष इस बातको समझ गये हैं, वे चेत गये हैं। परन्तु वे अपनी उत्पन्न की हुई स्थितिको एकाएक बदल नहीं सकते। सभी अंग्रेजोंको भारतमें आते ही यह सिखाया जाता है कि वे हमारा तिरस्कार करें, अपनेको बड़ा समझें और हमसे अलग रहें। उनके वातावरण में ही यह भावना व्याप्त रहती है। उच्च अंग्रेज अधिकारी इस वातावरणसे स्वयं मुक्त होनेका और अपने अधीनस्थोंको मुक्त करनेका प्रयत्न करते हैं, परन्तु तत्काल सफल नहीं हो सकते। अगर वक्त नाजुक न होता, तो हम उनसे लड़ते; परन्तु ऐसे वक्तमें कमीशनों आदिकी प्रतीक्षामें बैठे रहना ‘मुंहसे बदला लेनेके लिए नाक काट लेने’ के समान है। यह भी हो सकता है कि हम कमीशनोंकी प्रतीक्षामें बैठे रहें और हमें साम्राज्यकी सहायताका अवसर ही न मिले।

मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि यदि सरकार कमीशन आदि न देकर या देनेमें देर करके हमें सेनामें भरती होनेसे या किसी दूसरी तरहकी मदद देनेसे रोकना चाहती हो, तो भी हमें आग्रहपूर्वक सेनामें भरती होना चाहिए।

सरकारको इस समय सेनाके लिए पाँच लाख आदमी चाहिए। इन्हें सरकार किसी भी तरह जुटा लेगी। यदि हम उसे इतने आदमी दे देंगे, तो यश हमें मिलेगा, हम सेवा करेंगे और कभी-कभी यह जो शिकायत सुनी जाती है कि रंगरूट भरती करनेवाले एजेंट लोगोंको अनुचित ढंगसे ले जाते हैं, वह भी दूर हो जायेगी। भरतीका सारा कार्य हमारे हाथमें आना कोई साधारण अधिकार नहीं है। अगर सरकारका हमपर अविश्वास होगा, अगर उसकी नीयत साफ नहीं होगी, तो वह हमसे सैनिकोंकी भरतीका काम नहीं करायेगी।

ऊपर दिये गये तर्कों और तथ्योंसे देखा जा सकेगा कि फौजमें भरती होनेसे और साम्राज्यको मदद देनेसे हममें स्वराज्यकी योग्यता आती है। उससे हम भारतका बचाव करना सीखते हैं और एक हदतक अपनी खोई हुई मर्दानगी फिर प्राप्त करते हैं।

मैं कहना चाहता हूँ कि अंग्रेजोंके गुणोंमें मेरा विश्वास है, इसीलिए मैं उपर्युक्त सम्मति दे सकता हूँ। इस जातिने भारतका बहुत अहित किया है। फिर भी मैं मानता हूँ कि उससे सम्बन्ध रखना हमारे लिए हितकर है। उसके गुणों और दोषोंका विचार करनेपर मुझे उसमें गुण अधिक मालूम होते हैं। अलबत्ता इस जातिके शासनमें रहना दुःखदायी है। अंग्रेजोंमें एक बहुत बड़ा दोष यह है कि वे अपनी अधीनस्थ जातियों के