पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/४५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२५
सैनिक-भरतीकी अपील

स्वाभिमानकी भावनाको समाप्त कर देते हैं। परन्तु उनमें बराबरीकी जातियोंका पूरा आदर करने और उनके प्रति वफादारी दिखानेका गुण भी है। हमने देखा है कि उन्होंने दूसरोंके अन्यायसे पीड़ित लोगोंको अक्सर मदद दी है। उनके साझेमें रहकर हम उनसे बहुत-कुछ ले सकते हैं और उन्हें बहुत कुछ दे भी सकते हैं। और सम्भव है, हमारा ऐसा सम्बन्ध संसारके लिए हितकर हो। अगर मेरा यह विश्वास न हो और इस जातिसे बिलकुल स्वतन्त्र होना मुझे इष्ट प्रतीत हो, तो मैं मदद देनेकी सलाह न दूँ। इतना ही नहीं, उनके विरुद्ध विद्रोह करनेकी सलाह देकर, विद्रोहकी सजाका पात्र बनकर भी जनताको सचेत करूँ। अभी तो हमारी स्थिति भी ऐसी नहीं है कि हम किसी अन्य जातिकी सहायताके बिना अपने ही पैरोंपर खड़े रह सकें। मैं यह मानता हूँ कि हमारी उन्नति साम्राज्यमें बराबरीके हिस्सेदार बनकर रहनेसे होगी। मैंने सारे भारतमें घूमकर यह देखा है कि सब स्वराज्यवादी भी ऐसा ही मानते हैं। मैं यह आशा करता हूँ कि मैं खेड़ा जिले और गुजरातसे पाँच सौ या सात सौ नहीं, बल्कि हजारों रंगरूट भरती कर सकूँगा। यदि गुजरात ‘नामर्दी’ के कलंकसे बचना चाहता है तो उसे हजारों सिपाही देने चाहिए। इस सेनाकी कल्पनामें शिक्षितवर्ग, पाटीदार, बारैया और वाघरी वगैरा सब आ जाते हैं और मुझे आशा है कि वे सब एक कतारमें खड़े होकर लड़ेंगे। जबतक शिक्षित अथवा पढ़ा-लिखा श्रेष्ठ वर्ग आगे नहीं आयेगा, तबतक दूसरे वर्गोंसे आशा रखना व्यर्थ है। मुझे आशा है कि पढ़े-लिखे लोगोंमें से जो अधिक उम्रके होनेपर भी तन्दुरुस्त हैं, वे सभी भरती हो सकेंगे। उनका उपयोग लड़ने-भिड़नेमें नहीं, तो लड़ाईसे सम्बन्धित अनेक कामोंमें किया जा सकता है; वे सिपाहियोंकी सेवा-शुश्रूषा कर सकते हैं। मुझे आशा है कि जिनके युवा पुत्र हैं, वे अपने उन पुत्रोंको लामपर भेजनेमें तनिक भी न हिचकिचायेंगे। युद्धमें पुत्रोंकी वीरगति वीर पुरुषोंके लिए दुःखद नहीं, बल्कि सुखद होनी चाहिए। इस अवसरपर किया यह पुत्र-त्याग स्वराज्यके निमित्त किया गया बलिदान माना जायेगा।

बहनोंसे मेरी प्रार्थना है कि आप मेरी इस अपीलसे घबरायें नहीं, बल्कि उसका स्वागत करें। इसमें आपकी रक्षाकी, लाज बचानेकी कुंजी छिपी हुई है।

खेड़ा जिलेमें ६०० गाँव हैं। हर गाँवकी औसत आबादी एक हजारसे अधिक है। अगर हर गाँव कमसे-कम बीस आदमी दे तो खेड़ा जिलेमें १२,००० लोगोंकी सेना बन सकती है। खेड़ा जिलेमें सात लाखकी आबादी है। इसमें इस भरतीका अनुपात सौके पीछे १-७ आता है। इससे तो हमारी प्रतिशत मृत्यु-संख्या अधिक है। अगर हम साम्राज्यके लिए― स्वराज्यके लिए इतनी भी कुर्बानी देने के लिए तैयार न हों और नालायक ठहराये जायें तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। अगर हर गाँव बीस-बीस आदमी दे, तो वे लड़ाईसे लौटकर गाँवकी जीवित किलेबन्दी बन जायेंगे। अगर वे लड़ाईमें खेत रहे, तो वे स्वयं अमर बन जायेंगे और अपने गाँव और देशको अमर बना देंगे और उनके पीछे वैसे ही दूसरे बीस सैनिक तैयार होकर देशकी रक्षा करेंगे।

यदि हमें यह काम करना ही है, तो उसे करने में हम सुस्ती नहीं कर सकते। मैं यह चाहता हूँ कि हरएक गाँवसे अधिकसे-अधिक बलवान् लोग चुने जायें और उनके नाम भेज दिये जायें। मैं अपने भाइयों और बहनोंसे यही माँग करता हूँ। आप