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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोगोंको समझानेके लिए और आपके विविध प्रश्नोंका उत्तर देनेके लिए मुख्य गाँवोंमें सभाएँ की जायेंगी और स्वयंसेवक भी भेजे जायेंगे।

भाई वल्लभभाई झवेरभाई पटेल (बैरिस्टर), भाई कृष्णलाल नरसिंहलाल देसाई (एम० ए०, एल एल० बी०), भाई इन्दुलाल कन्हैयालाल याज्ञिक, भाई हरिप्रसाद पीताम्बरदास मेहता (हितेच्छु प्रेसके मालिक), भाई प्रागजी खंडुभाई देसाई, भाई मोहनलाल कामेश्वर पंड्या, भाई गणेश वासुदेव मावलंकर (बी० ए०, एल एल० बी), भाई कालीदास जसकरण झवेरी (बी० ए०, एल एल० बी०), भाई फूलचन्द बापूजी शाह, भाई गोकलदास द्वारकादास तलाटी (बी० ए०, एल एल० बी०), भाई शिवाभाई भाईलालभाई पटेल (बी० ए०, एल एल० बी०) और भाई रावजीभाई मणिभाई पटेल आदि सज्जन इस काममें शरीक हुए हैं।

मोहनदास करमचन्द गांधी

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

३०४. पत्र: सी० एफ० एन्ड्यूजको

[नडियाद
जून २३, १९१८ से पूर्व][१]

[प्रिय चार्ली,]

जहाँतक मेरे प्रस्तावका सम्बन्ध है, तुम जानते हो, मैं मैफीके [२] नाम लिखे गये अपने पत्रमें कह चुका हूँ कि [इस मामलेमें] मैं मित्र या शत्रु किसीकी जान न लेना अपना धर्म मानता हूँ। उन लोगोंके प्रति जो लड़ना तो चाहते हैं, परन्तु कायरताके कारण या अंग्रेजोंके प्रति द्वेष रखनेके कारण लड़ेंगे नहीं; मेरा क्या कर्त्तव्य है? क्या उनसे मुझे यह न कहना चाहिए कि “अगर तुम मेरे रास्तेपर चल सकते हो तो बहुत ठीक है; परन्तु यदि तुम ऐसा नहीं कर सकते तो तुम्हें अपनी कायरता अथवा द्वेष- भावना त्याग कर लड़ना चाहिए। जो व्यक्ति किसीकी जान लेनेकी क्षमता नहीं रखता उसे तुम अहिंसा नहीं सिखा सकते। तुम किसी गूँगेको मौनका गुण[३] और विशेषता नहीं समझा सकते। यद्यपि में जानता हूँ कि शान्ति बहुत अच्छी चीज है; फिर भी मैं उन साधनोंका उपयोग करनेमें संकोच न करूँगा जिनसे गूँगा फिर बोल सके। मैं किसी शासन-व्यवस्था में

  1. सी० एफ० एन्ड्यूजने गांधीजीके पत्रका उत्तर २३ जूनको दिया था।
  2. देखिए “पत्र जे० एल० मैफीको”, ३०-४-१९१८।
  3. इस बारेमें एन्ड्यूजने यह लिखा था: “आपने अपने पत्रमें गूँगेसे जो तुलना की है वह मिसाल मुझे ठीक नहीं लगती। यह तो प्रायः ऐसी युक्ति देनेके समान है कि भारतीयको, जो खून-खराबीको बिलकुल भूल गये हैं, इस बातके लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है कि वे पहले खून-खराबी करना सीखें और फिर स्वयं ही उसे त्याग दें।”