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भाषण : द्वितीय गुजरात शिक्षा सम्मेलनमें


फिर भी दूसरे प्रान्तोंमें इस बारेमें क्या कार्रवाई की गई है, इसकी जाँच करनेसे हम कुछ मुश्किलें हल कर सकते हैं। बंगभंगके[१] समय जब स्वदेशीका जोश उमड़ रहा था, तब बंगालमें बँगलाके जरिये शिक्षा देनेका प्रयत्न किया गया। राष्ट्रीय पाठशालाकी स्थापना भी हुई। रुपयोंकी वर्षा हुई। पर यह प्रयोग बेकार गया। मेरी यह नम्र राय है कि व्यवस्थापकोंकी अपने प्रयोगमें आस्था नहीं थी। वैसी ही करुणाजनक स्थिति शिक्षकोंकी भी रही। बंगालमें शिक्षित-वर्गको अंग्रेजीसे बड़ा मोह है। यह कहा गया है कि बँगला साहित्यने जो प्रगति की है उसका कारण बंगालियोंका अंग्रेजी भाषा और साहित्यपर अधिकार है। लेकिन तथ्य इस तर्कके विरुद्ध है। रवीन्द्रनाथ ठाकुरकी[२] चमत्कारिक बँगला अंग्रेजीकी ऋणी नहीं है। उनके भाषा-चमत्कारके पीछे उनका स्वभाषा विषयक अभिमान है। 'गीतांजलि' पहले बँगला भाषामें ही लिखी गई थी। महाकवि ठाकुर बंगालमें बंगलाका ही प्रयोग करते हैं। उन्होंने हाल ही में भारतकी वर्त्तमान स्थितिपर कलकत्तेमें जो भाषण दिया था, वह बँगलामें दिया था। बंगालके प्रमुख स्त्री-पुरुष उसे सुनने गये थे। जिन्होंने उसे सुना था उन्होंने मुझे बताया है कि डेढ़ घंटे तक अपने श्रोताओंको उन्होंने रस-विभोर रखा। उन्होंने अपने विचार अंग्रेजी साहित्यसे नहीं लिये। वे कहते हैं कि उन्होंने ये विचार इस देशके वातावरणमें से लिये है, उपनिषदोंमें से निचोड़े हैं। उनपर इन विचारोंकी वर्षा भारतके आकाशसे हुई है। मेरा विश्वास है कि यही बंगालके दूसरे लेखकोंके सम्बन्धमें भी सही है।

हिमालयकी तरह गम्भीर और भव्यदर्शी महात्मा मुन्शीरामजी[३] जब हिन्दीमें भाषण देते हैं, तब बच्चे और बड़े, स्त्री और पुरुष सभी उनका सुन्दर भाषण सुनते और समझते हैं। उन्होंने अपनी अंग्रेजी अपने अंग्रेज मित्रोंके लिए ही सुरक्षित रख छोड़ी है। वे अंग्रेजी शब्दोंका अनुवाद करके अपनी बात नहीं कहते।

कहा जाता है कि गृहस्थ होते हुए भी देशके लिए आत्मार्पण करनेवाले महामना पं॰ मदनमोहन मालवीयकी[४] अंग्रेजी चाँदीकी तरह शुभ्र होती है। वे जो कुछ कहते हैं, उसपर वाइसरॉयको सोचना पड़ता है। अगर उनके अंग्रेजी भाषणका प्रवाह चाँदी-जैसा चमकता है, तो उनके हिन्दी भाषणका प्रवाह शुद्ध तरल सोने-जैसा दमकता है। मानसरोवरसे उतरते समय सूर्यकी किरणोंसे जैसे गंगा दमकती है वैसी ही शोभा उनकी हिन्दीकी होती है।

 
  1. १९०५ में प्रशासनिक सुविधाके बहाने बंगालका विभाजन कर दिया गया था। विभक्त प्रान्तोंमें एकमें मुसलमानों और दूसरेमें हिन्दुओंका बहुमत था। इस विभाजनसे देशभरमें एक तूफान खड़ा हो गया और इसके फलस्वरूप अंग्रेजी मालके बहिष्कारका आन्दोलन शुरू किया गया। अन्तत: १९११ में यह विभाजन रद कर दिया गया।
  2. १८६१-१९४१; कवि तथा विश्वभारतीके संस्थापक।
  3. स्वामी श्रद्धानन्द; हरद्वारके समीप गुरुकुल कांगड़ीके संस्थापक।
  4. मदनमोहन मालवीय (१८६१-१९४६) बनारस विश्वविद्यालय के संस्थापक; शाही परिषदके सदस्य, १९०९ और १९१८ में कांग्रेसके अध्यक्ष निर्वाचित।

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